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उनके संस्कार कहाँ गए, जिन्होंने माता पिता को भेजा वृद्धाश्रम। वृद्धाश्रम की राहें पूछती सवाल – जे पी शर्मा की कलम से

 

आज के दौर में जब हम आधुनिकता और प्रगति की बात करते हैं, तो हमारा समाज एक ऐसा दृश्य प्रस्तुत करता है जो विचलित कर देता है। उन माता-पिता, जिन्होंने अपने बच्चों को जन्म दिया, पाल-पोसकर बड़ा किया, उन्हें अच्छे संस्कार दिए, वे ही माता-पिता आज वृद्धाश्रम में अपनी जिंदगी बिताने को मजबूर हैं। यह सवाल उठता है कि आखिर उनके बच्चों के संस्कार कहाँ गए, जो उन्हें अपने ही माता-पिता का सहारा बनने से रोकते हैं?

माता-पिता का त्याग और योगदान

माता-पिता का जीवन त्याग और समर्पण का प्रतीक होता है। वे अपनी खुशियों, सपनों, और यहां तक कि जरूरतों को भी अपने बच्चों के लिए त्याग देते हैं। उनके लिए बच्चों की छोटी-छोटी उपलब्धियां सबसे बड़ी खुशी होती हैं। उन्होंने अपने बच्चों को हर कठिनाई से बचाया और उन्हें जीवन की हर सुविधा दी। लेकिन जब वे स्वयं वृद्धावस्था में सहारे की जरूरत महसूस करते हैं, तो कई बार उनके बच्चे उन्हें बोझ समझने लगते हैं।

वृद्धाश्रम: एक कड़वा सत्य

आजकल समाज में वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ रही है। वृद्धाश्रम, जो कभी अपवाद हुआ करते थे, अब आम बात हो गए हैं। इन संस्थानों में वे बुजुर्ग रहते हैं, जिनके बच्चे उनका साथ छोड़ चुके हैं। यहां वे अपनों से दूर, परायों के साथ जीवन के अंतिम दिन काटने को मजबूर होते हैं। यह स्थिति न केवल उनके जीवन को खालीपन से भर देती है, बल्कि हमारे समाज के गिरते मूल्यों को भी दर्शाती है।

संस्कारों की गिरावट

यह विडंबना है कि जिन बच्चों को अच्छे संस्कार सिखाए गए, वे ही अपने माता-पिता को भूल जाते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि उनके माता-पिता ने उनकी परवरिश में कितनी मेहनत और प्यार लगाया था। उनकी व्यस्त जीवनशैली और भौतिकवादी दृष्टिकोण उन्हें परिवार और रिश्तों से दूर ले जाते हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है:
“क्या हमारी शिक्षा और आधुनिकता हमें परिवार से विमुख कर रही है?”

समाधान और जागरूकता

समाज को यह समझने की आवश्यकता है कि माता-पिता का स्थान किसी वृद्धाश्रम में नहीं, बल्कि उनके बच्चों के दिल और घर में है। बच्चों को बचपन से यह सिखाना होगा कि माता-पिता की सेवा करना न केवल उनका कर्तव्य है, बल्कि यह जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य भी है।

1. संस्कारों पर जोर दें: बच्चों में परिवार के प्रति सम्मान और कर्तव्य की भावना जागृत करें।

2. वक्त बिताएं: माता-पिता के साथ समय बिताना उनके अकेलेपन को दूर कर सकता है।

3. समाज की भूमिका: समाज को उन परिवारों को प्रेरित करना चाहिए जो अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम भेजने का विचार करते हैं।

 

निष्कर्ष

वृद्धाश्रम एक ऐसी पीड़ा का प्रतीक है जो हमें अपने समाज और स्वयं पर आत्ममंथन करने के लिए मजबूर करता है। जिन माता-पिता ने अपना सबकुछ बच्चों के लिए न्योछावर कर दिया, वे ही वृद्धावस्था में अकेले क्यों हैं?
संस्कार, परंपरा, और रिश्तों का सम्मान ही वह धरोहर है जो हमारी संस्कृति को जीवंत रखेगी। आइए, अपने माता-पिता को वह सम्मान और प्यार दें, जिसके वे सच्चे अधिकारी हैं।
क्योंकि उनके आशीर्वाद के बिना हमारी खुशियां अधूरी हैं।

जे पी शर्मा / जर्नलिस्ट

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