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प्रेम के नए रंग: श्रेया और नवल की कहानी / सुप्रसिद्ध लेखिका व कवियित्री मंजू शर्मा की कलम से

निर्णय कहानी का अगला अंक

 

धीरे से श्रेया के मुंँह से निकल पड़ा…कुछ झरने सिर्फ बरसात में बहते हैं नवल…
इतनी बात सुनते ही नवल बिना कुछ कहे ही वहांँ से जाने लगा । श्रेया ने भी उसे रोकने की कोशिश नहीं कि…आखिर रोकती भी तो कैसे… उसकी इस उदासी का कारण वो खुद ही तो थी। श्रेया थकी हुई वहीं बैंच पर बैठ गई और अपने अतीत के बारे में सोचने लगी। कितना खूबसूरत रहा उसके अतीत का झरोखा। दोनों एक दूसरे को दिलोजान से चाहते थे। अगर किसी दिन मुलाकात नहीं होती तो कैसे बेजान हो जाते थे। लेकिन नियति को कहाँ मंजूर सच्ची मोहब्बत के सहारे।
कहते हैं सच्चे प्यार को नजर लग ही जाती है। ऐसा श्रेया के साथ भी हो गया। एक दिन अचानक श्रेया का प्यार बिना कुछ कहे उससे बहुत दूर चला गया। हर दिन जिससे मिलकर रूह को सुकून मिलता,नये ख्वाब और ख्वाहिशों का आसमान सजता अब सब मरूस्थल के जैसा बन गया। धीरे-धीरे समय बीतता गया और साथ ही श्रेया ने खुद को किसी तरह दिलासा देते हुए दुनिया की भीड़ में चलना सीख लिया।
नवल का उससे मिलना, बातें करना, वह सब समझती थी। आज वह उससे अपने प्यार का इज़हार करने आया था। लेकिन मायूस होकर पार्क से बाहर निकल गया। अपने अतीत को याद कर श्रेया का मन भर आया। आँसू न चाहते हुए भी आँखों से लुढ़ककर खुश्क गालों पर अपना असर छोड़ते हुए हृदय में कहीं खो गए।
पास ही पौधों को सींचते हुए माली के गुनगुनाने की आवाज पर श्रेया का ध्यान गया…. प्यार हुआ इकरार हुआ है, प्यार से फिर क्यों डरता है दिल…सुनते-सुनते श्रेया पार्क से बाहर चली आयी तो देखा नवल बाइक के सहारे खड़ा एकटक आसमान को निहार रहा था…जैसे जकड़ लेना चाहता हो कसकर अपनी बाहों में उन पलों को…श्रेया को देखते ही वह दौड़कर आया और बोल उठा…’घर छोड़ दूंँ तुम्हें’… श्रैया चुपचाप बाईक पर बैठ गई। खामोशी का आवरण ओढ़े दोनों मौन संवाद करते रहे। घर की गली के नुक्कड़ पर पहुंँचते ही श्रेया ने नवल के कंधे पर हाथ रखा। जैसे ही नवल ने बाइक ब्रेक लगाए…श्रेया ने “सॉरी”कहा और उतरकर चलने लगी। तभी नवल के सब्र का बाँध टूट गया और एक साँस में बोलता चला गया- मैं तुम्हें हमेशा खुश देखना चाहता हूंँ और कुछ नहीं चाहिए मुझे जिंदगी से ,, तुम्हारे अतीत से मुझे कोई मतलब नहीं। मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। तुम्हारी हाँ का इंतजार करता रहूँगा। अपना ख्याल रखना। इतना कहने के बाद उसने बाइक स्टार्ट की और चला गया। श्रेया उसे जाते हुए देखती रही जब तक वह आँखों से ओझल नहीं हो गया। नवल का तबादला दूसरे शहर हो गया। वो जाते समय भी मिलने नहीं आया। बस फोन पर कभी-कभार एक दूसरे से बातें हो जाती।
समय के साथ यादें धुँधली पड़ जाती है । लेकिन नवल का इंतजार नहीं । लगभग दो बरस बीत गए। एक दिन नवल ने मैसेज किया- “आ रहा हूँ तुम्हारे शहर, अपने दिल के शहर। कल उसी पार्क में तुम्हारा इंतजार करूंगा” समय से पहुंँच जाना। समझ नहीं सकी श्रेया खुश हो या दु:खी, फिर भी वह तय समय पर दूसरे दिन पार्क पहुंँच गई। नवल ने श्रेया को प्रपोज करने के स्टाइल में गुलाब का फूल देते हुए कहा- “आज भी मुझे तुम्हारी हाँ का इंतजार है। कह दो ना तुम्हें भी मुझसे प्यार है।” और बच्चों की तरह इठला पड़ा।
श्रैया आज अपराधबोध-सा महसूस कर रही थी।नवल श्रैया के चेहरे पर बरसों पुराने वही भाव देखकर मायुस होता हुआ बोला -श्रैया मैं जानना चाहता हूंँ ऐसी कौन-सी बात है जो तुम अपने इस दोस्त को नहीं बता सकती ।आज मैं अपने सवालों का जवाब लिए बिना नहीं जाऊंगा। नवल की जिद का आज भी वही रूप देखकर श्रैया असंमजस में थी अब क्या करे?
उसने नवल का गुलाब वाला हाथ अपने दोनों हाथों की मुट्ठी में बंद करते हुए अतीत की परतें खोल दी।
सुनकर नवल ने कहा, ‘वो तुम्हारा अतीत था। मैं समझता हूँ और मानता भी हूँ कि तुमने रूहानी मोहब्बत की।
मैं यह कभी नहीं कहूंँगा कि उसका स्थान मुझे दे दो।
बस इतना कहना है। वह तो किसी बहती नदी की तरह सागर जैसी ज़िन्दगी में जा मिला होगा। “लेकिन क्या तुम झील बनकर ठहरी रहोगी, आखिर कब तक?” तभी श्रैया का मौन टूटा, ऐसा नहीं है नवल, उसकी कोई मजबूरी रही होगी। वो मेरे लिए ईश्वर से कम नहीं। नवल ने कहा, सही तो है वैसे भी प्रेम तो पूजा ही होता है अपने आराध्य के प्रति…मैंने भी वही स्थान दिया है तुम्हें । बस तुम मेरी पूजा स्वीकार कर लो। इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं चाहिए। नवल की आंँखों में प्रेम के अथाह सागर को देखकर श्रैया उसके गले लग गई और तब तक रोती रही जब तक आँसुओं का ठहरा हुआ सागर रीत नहीं गया। आज बहुत हल्का महसूस कर रही थी श्रैया। तभी नवल ने माहौल की नजाकत को समझ और चुलबुला बनाते हुए कहा- दो बरस तक तुम्हारी हांँ के इंतजार में चाय को ही अपनी प्रेमिका बना लिया था … चलो आज साथ में बैठकर चाय को जलाते हैं।
श्रैया बोली, ये मत भूलना उसने तुम्हारा तन्हाइयों में साथ निभाया है और दोनों खिलखिला कर हँस पड़े।
श्रैया, नवल दोनों पार्क से बाहर निकल रहे थे । उधर उनके पीछे माली अपने आप से बातें करते हुए गुनगुना रहा था…आज तो पूनम की रात है और…चाँद जैसे मुखड़े पे बिंदिया सितारा…..

मंजू शर्मा
कार्यकारी संपादक

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