बदलते परिवेश // लेखिका सुमन झा

बहुत दिनों से पढ़ और और देख रही हूं कि क्या विधवा औरतों को दोबारा शादी करनी चाहिए या नहीं लगभग सभी का जवाब हां है जो की एक अच्छी बात है कम से कम उसने अपने कर्तव्य , प्रतिवर्ता धर्म का पालन तो किया ।मेरे ख्याल से उससे पवित्र मान मर्यादा और संस्कारी तो कोई हो ही नहीं सकती क्योंकि पति के मरने के बाद कम से कम वह एक विधवा का धर्म तो निभाती है निश्चायी यह एक गंभीर विषय था ।
पर इससे ज्यादा भी जटिल एक सवाल है —
क्या एक ऐसी औरत को भी दोबारा शादी करनी चाहिए जो पति के जिंदा रहते ही मांग का सिंदूर तक मिटा कर एक नया यार बना कर, एक बसे बसाए घर को तोड़कर उनके बीच दरारें डालकर खुद अपने मायके बैठकर मायके पक्ष वालों के साथ मिलकर ससुराल पक्ष पर झूठा मुकदमा दायर कर समाज में इज्जत का नकाब पहन कर बाप के सर पर बैठ कर पति प्रेम और कश्मे वादे, से , यहां तक कि अपने खुद के पैदा किये संतान से खिलवाड़ दूसरी शादी करती है।
बात यहीं खत्म तो नहीं है
उससे भी जटिल एक और सवाल एक और बाकी है—-
अब यह बताएं क्या उन लड़कों को भी दोबारा शादी करनी चाहिए या उनकी होगी जो खुद और और उसका परिवार यह सब प्रताड़ना झेल रहा हो एक तरफ समाज में शर्मिंदगी मुकदमों का शोर ना कुछ करते हुए भी सिद्ध हुए आरोपी और सबसे अहम बात की जिसको बड़े प्यार, दुलार,सम्मान के साथ घर लाए थे कितने सपने सजाए थे उसके द्वारा किया गया यह व्यवहार वह तो खुद ही टूट चुके होंगे तो क्या वह दूसरे को सहारा दे पाएंगे क्या दूसरा कोई परिवार उन्हें अपनी बेटी देना चाहेगा क्योंकि समाज में उनकी प्रतिष्ठा तो चली जा चुकी होती है सवाल बहुत है जवाब कोई नहीं क्योंकि सारे अधिकारों महिलाओं के हैं चाहे वह अपने मायके में हो चाहे ससुराल में या फिर अदालत में……..
सुमन झा “माहे”