लघु कथा छोटा भाई छोटे भाई का प्रेम बड़े भाई का स्नेह // लेखक महेन्द्र गर्ग

कृष्णनगर नमक गांव में दो भाई रहते थे बड़े भाई का नाम महेश और छोटे भाई का नाम राकेश था । दोनों भाइयों में बड़ा प्रेम व स्नेह था मां की मृत्यु कोरोना काल में हो गई थी तथा पिता की मृत्यु तपेदिक नामक रोग से हो गई थी तो सारी जिम्मेदारी बड़े भाई महेश के ऊपर ही थी।
महेश विवाहित था और राकेश अविवाहित था ।
राकेश काम में अपने बड़े भाई का हाथ तो बंटता था लेकिन साथ ही अपने यार दोस्तों के साथ खूब मौज भी उड़ाया करता था राकेश के दोस्तों का उसके घर आना-जाना लगा ही रहता था। दोस्तों के आने से चाय नाश्ता और भोजन का खर्च भी लगता था । यह बात महेश की पत्नी को बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती थी । इसलिए उसने राकेश के खिलाफ अपने पति के कान भरने शुरू कर दिए जिसकी वजह से दोनों भाइयों में झगड़े होने शुरू हो गए । एक दिन दोनों ने आपस में बैठकर विचार किया इससे पहले की हमारे आपसी संबंध खराब हो जाए हमें अलग हो जाना चाहिए ।
फिर दोनों भाइयों में जमीन जायदाद का बंटवारा हो गया और खेती के बारे में यह निर्णय हुआ कि जो भी अनाज खेतों में पैदा होगा वह दो पक्षों में बांटा जाएगा दोनों भाई अलग-अलग रहने लगे महेश की पत्नी अब बहुत खुश थी क्योंकि अब उसे राकेश के दोस्तों के लिए चाय नाश्ता नहीं बनाना पड़ता था लेकिन वह दोनों भाई खुश नहीं थे बंटवारा हो जाने के बावजूद उनका प्रेम कम नहीं हुआ था ।
खेतों में फसल पक गई दोनों भाइयों ने उसे बराबर बराबर बांटकर वहीं खेत में ढेरी लगा दी उसके बाद महेश अपने छोटे भाई से बोला देखो राकेश तुम्हारे दोस्त बहुत हैं उसको खिलाने पिलाने के लिए काफी अनाज लगता है तुम अकेले हो सही देखभाल न होने से कुछ अनाज खराब भी हो जाता है इसलिए तुम पांच बोरी अनाज ज्यादा ले लो इस पर राकेश ने उत्तर दिया नहीं भैया,मुझे ज्यादा अनाज की जरूरत नहीं है लेकिन आपका परिवार है बच्चे हैं इसलिए आपको अधिक अनाज की जरूरत है आप पांच बोरी अनाज अधिक ले लो इस तरह दोनों भाई एक दूसरे को अधिक अनाज लेने के लिए कहते रहे लेकिन कोई राजी नहीं हुआ ।
अंत में दोनों ने फैसला लिया की रात हो गई है अनाज की बोरियां रात में यहीं रहेगी हम लोग सुबह आकर इन्हें ले जाएंगे ।
दोनों भाई अपने-अपने घर आ गए और खा पी कर लेट गए लेकिन दोनों को नींद नहीं आ रही थी महेश सोच रहा था राकेश अभी छोटा है नासमझ है , खर्चीला भी है वह अनाज का सही रखरखाव नहीं कर पाएगा उसे अधिक अनाज मिलना चाहिए जिससे पूरा साल चल सकें लेकिन वह अधिक अनाज लेगा नहीं ।
मुझे क्या करना चाहिए?
फिर महेश के दिमाग में विचार आया। वह चुपचाप उठा और खेत में पहुंचा रात के अंधेरे में ही उसने अपनी ढेरी में से पांच बोरी गेहूं निकालकर राकेश की ढेरी में मिला दिया इसके बाद वह घर जाकर चैन से सो गया ।
इधर राकेश को भी बेचैनी के कारण नींद नहीं आ रही थी वह सोच रहा था कि भैया बड़े होने के कारण संतोष कर रहे हैं जबकि उनका परिवार बड़ा है जिम्मेदारियां भी अधिक है उन्हें अधिक अनाज मिलना चाहिए मैं अपने भाई के साथ अन्याय नहीं होने दूंगा वह भी उठा और खेत जाकर अपनी ढेरी में से पांच बोरी गेहूं महेश की ढेरी में रख आया सुबह दोनों भाई अनाज लाने खेत पहुंचे तो दोनों ढेरियों को बराबर देखकर चौंक गए ।बात समझ में आते ही दोनों एक दूसरे के गले लग गए। उनका आपसी प्रेम समर्पण स्नेह उमड़ पड़ा।
सीख : इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हम जब किसी छोटे या बड़े का ध्यान रखते हैं तब उनका भी फर्ज है कि वह ध्यान रखने वाले का ध्यान रखें ऐसा करने से रिश्तों में प्यार प्रेम स्नेह बना रहता है।
महेन्द्र गर्ग रंगरसिया
जोधपुर राजस्थान