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संस्मरण // लेखिका लक्ष्मी चौहान

 

देवभू‌मि उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में हिमालय पर्वत की गोद में बसा हिन्दुओं का प्रसिदध मंदिर केदारनाथ मंदिर चार धामों में से एक है। कत्यूरी शैली में बने इस मंदिर का निर्माण पाण्डयों के पौत्र महाराजा जन्मेजय ने कराया था।
सन् 1971 में जब मैं कक्षा-10 में पढ़ती थी तब मैंने अपने पिताजी, बडे व छोटे भाई के साथ केदारनाथ धाम की यात्रा की थी। गोपेश्वर से गौरीकुंड तक यात्रा बस से की। गौरीकुंड में गर्म पानी के कुंड में हाथ- मुंह धोने व कुछ देर विश्वाम करने के पश्चात् हमने पैदल यात्रा शुरू की। 16 किमी लम्बे पैदल मार्ग की ये कठिन यात्रा थी। पहाडों में पली-बढ़ी होने के कारण पैदल यात्रा में ज्यादा कठिनाई नहीं हुई थी। भारत के कोने-कोने से शिवभक्त वहाँ आये हुये थे। कुछ कन्डियों पर सवार थे और कुछ खच्चरों पर।
केदार मन्दिर पहुंचने पर चारों ओर बर्फ से ढके ऊंचे – ऊँचे पहाड़ दिखाई दिये। शांत वातावरण में सिर्फ पक्षियों का कलरव व नदी का निनाद ही सुनाई दे रहा था।वहाँ पहुंचने पर असीम सुख की प्राप्ति हुई। हमारे रहने की व्यवस्था पहाँ पर पहले से ही कर दी गई थी। नलों में पानी जम गया था जिसे आग की सहायता से गलाया जा रहा था। रात्रि विश्राम के बाद सुबह हमने स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन कर पूजा-अर्चना की। ये मेरी पहली आध्यात्मिक यात्रा थी। लौटते हुए हम गौरीकुंड से कर्णप्रयाग आये और वहाँ से वापस गोपेश्वर चले गये ।
——– श्रीमती लक्ष्मी चौहान
कोटद्वार, उत्तराखंड

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