सांवली –लघुकथा // शिखा खुराना

कोई आकर्षण नहीं है उसके व्यक्तित्व में, क्योंकि सांवले रंग की है उसकी त्वचा। सांवला रंग भी तो कुदरत की ही देन है। उसमें किसी ने स्वाभिमान आने ही नहीं दिया। सबने हमेशा उपेक्षा की उसकी। कभी किसी ने दया दिखाई तो वो समर्पित हो गई। खुद को झोंक दिया बेहतर साबित करने के लिए। सबने फायदा उठाया जीवन भर। घिसती रही खुद को चमकाने के लिए। उसे ही क्यों खुद को साबित करने के लिए सबकी नज़रों की तरफ देखना पड़ता है। उसके अपने माता-पिता, बहन भाई सबकी त्वचा गोरी है, तो क्या उसका कुसूर है ये कि वो सांवली है। मेहनती है, काबिल है, हुनर है उसके हाथ में। ऐसा अच्छा लिखती है कि गोरी त्वचा वाले जलन में नीचा दिखाने की कोशिश करते और कहते अच्छे लेखन से कोई किसी को चाहने वाला नहीं मिल जाता। खाना बनाने का हुनर ऐसा कि गोरी त्वचा वाले उंगलियां चाटते पर तारीफ़ ना कर पाते। बच्चे बेशक उसे बहुत चाहते थे क्योंकि वो त्वचा के रंग से भेदभाव ना कर पाते। बच्चों के साथ वो अपनी एक अलग दुनिया बनाती रही। अब बड़े लोगों की दुनिया से कटने लगी, क्योंकि जान गई थी कि खुश रहकर जीना कितना हसीन है। पढ़ाई लिखाई में अच्छी थी तो प्रतियोगिता परीक्षाओं को आसानी से पार कर सरकारी नौकरी में आ गई। रूतबे को देखते हुए अच्छे घर परिवार में शादी भी हो गई, पर सांवली त्वचा की वजह से उपेक्षित ही रही, पति और परिवार की नज़र में। गौरी त्वचा वाली बहुएं निकम्मी, निट्ठठली होकर भी सम्मान पातीं थी। ये सब उपेक्षाएं अब उसका मनोबल तोड़ने में कामयाब नहीं रहीं थीं। सबकी सेवा सुश्रुषा भी दिल से करती रही और बचा समय अपने लेखन और गायन को देने लगी। वो नहीं जानती वो अच्छा लिखती हैं यां अच्छा गाती है, बस खुद को व्यस्त रखती है और उसे खुशी मिलती है और दूसरों की नज़रों से खुद को नहीं देखती तो आत्मविश्वास बढ़ता है। इसे अपने जीने का लक्ष्य बनाकर बढ़ रही है, पीछे नहीं मुड़ना उसे। वो जानती है उसकी सांवली त्वचा में उभरते हुनर सबको चुभ रहे हैं। उसे डराकर, धमकाकर अपनी औकात में रहने का मशवरा भी देते हैं। पर अपनी सांवली त्वचा से प्यार करने लगी है वो, खुद से प्यार करने लगी है, अपने हुनर से प्यार करने लगी है। सांवली त्वचा को सम्मानित किया जाने लगा है। पंख उगने लगे हैं उसके, उड़ान भरने को तैयार कर रही है खुद को।
शिखा©®