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चालाक सौदागर // महेश तंवर

 

अरावली की तलहटी में बसा हुआ एक छोटा सा गांव सोहन पुरा। जिसका प्रागैतिहासिक चित्रांकन की श्रृंखला में नाम लिया जाता है। यहां एक ही जाति समूह के लोग रहते हैं, जो प्यार प्रेम और सौहार्द को परिभाषित करते हैं।
इसी गांव में रह रहा महेंद्र सिंह। महेंद्र सिंह का जीवन बहुत ही साधारण था। वह भेड़ बकरी चरा कर अपना गुजारा किया करता था। बूढ़े माता-पिता होने के कारण महेंद्र पर परिवार का भार जल्दी ही आ गया। महेंद्र के दो बहन थी। दीन स्थिति के कारण बहनों की शिक्षा अधिक नहीं हो सकी। दोनों बहन पेड़ पौधों की भांति बढ़ती ही जा रही थी। महेंद्र को उनकी बढ़ती उम्र का भी ख्याल था।
इस प्रकार समय निकलता गया। दोनों बहनों की शादी का समय आ गया। करीब 1 महीने पहले महेंद्र ने अपनी कुछ भेड़ बकरियों का सौदा किया। सौदागर बहुत चालाक था। वह सभी भेड़ बकरियों के अच्छे दाम लगा रहा था ।महेंद्र बहुत खुश था।
व्यापारी महेंद्र का भोलेपन का फायदा उठाते हुए ₹70 हजार नकली नोट दे दिए। व्यापारी ने कहा कि इन्हें घर में रख दो वरना कोई देख लेगा किसी को मत दिखाना महेंद्र ने वैसा ही किया। महेंद्र सीधा साधा था। वह व्यापारी की बात मान गया और नकली₹70 हजार घर में रख दिया। व्यापारी भेड़ बकरी लेकर चला गया ।संयोग से 10 दिन बाद नोट बंदी का आदेश आ गया ।महेंद्र भी अपने रखे हुए नकली नोटों को लेकर बैंक में गया।₹70 हजार रुपए महेंद्र ने मैनेजर साहब को थमा दिया। मैनेजर साहब देखते ही महेंद्र को डांटा और कहा कि यह रुपए तो नकली है । सच-सच बताओ कहां से लेकर आया।महेंद्र सुनते ही घबरा गया और कहा कि बाबूजी मुझे तो व्यापारी ने अपनी भेड़ बकरी बेचने के बदले में दिए हैं। मुझे पता नहीं वह व्यापारी कौन था और कहां से आया था ।महेंद्र की इमानदारी और भोलेपन को देखकर मैनेजर साहब बहुत प्यार से समझाते हुए घर भेज दिया। अब महेंद्र की हालत बहुत खराब हो गई ।महेंद्र अब जब भी लेनदेन करता है, तो दूसरों को ही दिखाकर ही करता है। अब महेंद्र सभी से कहने लगा कि कभी भी किसी भी प्रकार का सौदा करें, तो अकेले में ना करें, पढ़े लिखे के सामने करें। वरना हालात आपकी भी वही होगी ,जो आज मेरी हो रही है।
महेश तंवर

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