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संस्मरण // रेखा पुरोहित

 

बात तब की है जब मैं पांचवीं कक्षा में पढ़ती थी। उस समय हमारे परिवार को बड़ी आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था।मैं बहुत छोटी थी इसलिएअधिक नहीं समझ पा रही थी, परंतु ये जानती थी कि कुछ समस्या है।
जब मैंने कक्षा 5 उत्तीर्ण की तो मैं अपनी दादी से आगे की शिक्षा के लिए हाईस्कूल में प्रवेश करवाने की जिद करने लगी। उस समय तक मेरे गांव की सभी लड़कियां पांचवीं के बाद स्कूल छोड़ देती थीं। इस कारण दादी भी दुविधा में थी और ऊपर से आर्थिक स्थिति भी काफी खराब थी।
एक दिन मेरी एक सहेली ने मेरी दादी से कहा कि रेखा तो पढ़ना नहीं चाहती परंतु मेरी नकल कर रही है तभी वो आगे पढ़ने की जिद कर रही है। मेरी दादी को यह सुनकर बहुत बुरा लगा कि यह बात बच्चे ने कही जरूर है पर ये अवश्य किसी बड़े ने कही होगी क्योंकि अभी हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है।मुझे भी यह बात बहुत बुरी लगी परंतु उससे कुछ नहीं कहा।
फिर मैं और मेरी वो सहेली अब अपने क्षेत्र के हाईस्कूल में पढ़ने जाने लगी। मैं और मेरी सहेली हमारे गांव से कक्षा 6 में प्रवेश लेनेवाली पहली लड़कियां थी। कक्षा 6 में मेरे अपनी सहेली से अच्छे अंक आए। 7वीं कक्षा में अर्धवार्षिक परीक्षा में मेरी सहेली चार विषय में फेल हुई तो उसने विद्यालय जाना बंद कर दिया, सभी लोगों एवं शिक्षकों के समझाने पर भी वो फिर विद्यालय नहीं गई।
मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। आठवीं उत्तीर्ण करने के बाद घर वालों ने आगे पढ़ाई बंद करने को कहा तो मैं जिद्द पर अड़ गई और आगे की पढ़ाई जारी रखी। मुझे बार–बार अपनी सहेली की कही गई वहीं बात याद आती और पूरे जोश के साथ पढ़ाई करती। मैंने दसवीं कक्षा तक वहीं शिक्षा प्राप्त की। उसके बाद एम ए और बी एड किया और आज एक अध्यापिका के रूप में शिक्षण कार्य कर रही हूं।
आज भी मुझे जब याद आती उसकी कही गई वह बात तो उसके लिए धन्यवाद का भाव स्वतः मन में आ जाता है। उसकी कही वह बात मेरे लिए आगे बढ़ने की प्रेरणा बनी।

रेखा पुरोहित ‘तरंगिणी’
रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड

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