सच लिखने का अंदाज बदलो लिखने का मिजाज बदलो — बरिष्ठ पत्रकार पुष्पा भाटी

लोकतंत्र के लिए पत्रकारिता एक संजीवनी है, जिससे देश राज्य में लोकतंत्रीय व्यवस्था कायम है। पत्रकारिता का उद्देश्य होता है शासन, प्रशासन व सरकार के कामकाज पर नजर रखना और गलतियों को जनता के सामने लाकर अपना कर्तव्य का निर्वहन करना, लेकिन आज इसके विपरीत हो रहा है, सत्ता और सरकार की नाकामियों को नजरअंदाज करना और झूठी तारीफे करना… आज के दौर में पत्रकारिता को सच स्वीकार होता नजर नहीं आ रहा, सच लिखने वाला झूठी तारीफों के पुल नहीं बाध सकता। सच्चाई लिखने का अदब फरमाना ही पत्रकारिता
है। इसी अंदाज में व्यक्तव्य को बयां कराती कुछ लाइने है…
जिन्दा रहना है तो। पत्रकार महोदय लिखने का मिजाज बदले…
बदले सच लिखने का अंजाम अब परिवार @ बेलगाम ट्रांसफर इत्यादि चार अटैक…
ऑल इंडिया पत्रकार एकता संघ की वरिष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष सुश्री पुष्पा भाटी ने अपने अंदाजे बयां में इसे कुछ तरह बयां किया…
कब तक डरता रहेगा एक पत्रकार सच्चाई को उजागर करने में, क्या सच लिखना अब अपराध है, सच बोलने वाला आज निशाने पर क्यों आ जाता है…
एक तरह की दिखावे की कठपुतली बनता पत्रकार अब मंदिर की घंटी बन गया है, जिसे जब चाहा बजा लिया…
माफियाओं ने गोली से ऊंचे ओहदे ने झूठे मुकदमे से, सच की कलम को निचोड़कर कर रख दिया…
ये लोकतंत्र है या डर का साम्राज्य है!
वहीं उन्होंने मुख्यमंत्री को मुखातिब करते हुए कहा-सीएम सहाब पत्रकारों के लिए पत्रकार सुरक्षा कानून अति शीघ्र लागू किया जाए, करोड़ों की भीड़ में तस्करों और माफियाओं की हकीकत तस्वीर को दिखाने में एक ही पत्रकार काफी है…
भूमाफियओं, अवैध कारोबारियों की मुठभेड़ में पत्रकारों से कोई भिड़
जाता है तो गिरे हुए पत्रकार को देखकर कहते है-क्या हुआ मामूली सी लग गई तो एक पत्रकार तो है। ऐसे जमाने की दौड़ में कौन सच दिखाएगा, कौन लिखेगा खबरें, कौन सा अखबार उस जख्मी पत्रकार की खबर चलाएगा।
सुश्री पुष्पा भाटी ने आगे फरमाया-जमाने की खैर के लिए इन मुसाफिर पर दया उतारे जहन में …
वह बोलीं-महोदय ! पत्रकार की हैसियत को समझें, नहीं तो इस फरेबी जमाने में तौहीन हो जाएगी सत्य की
– सुश्री पुष्पा भाटी