Uncategorized

अनुशासन और ईमानदारी की सज़ा कब तक? — शिखा खुराना

 

एक अनुशासित नागरिक वह होता है जो समाज के नियमों, कानूनों और नैतिक मूल्यों का पालन करता है। मेरे पति ऐसे ही एक जिम्मेदार नागरिक हैं, जो ट्रैफिक नियमों से लेकर सामाजिक मर्यादाओं तक, हर पहलू में अनुशासन का पालन करना अपना कर्तव्य समझते हैं। वे समय के पाबंद हैं, दूसरों की भावनाओं का सम्मान करते हैं, स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण को महत्व देते हैं और सदैव सामाजिक समरसता बनाए रखने का प्रयास करते हैं।
किन्तु, क्या हमारे समाज में ऐसे अनुशासित नागरिकों को वास्तव में उनका अधिकार और सम्मान मिलता है? या फिर उनकी ईमानदारी और नियमों के प्रति प्रतिबद्धता को उनकी कमजोरी समझ लिया जाता है?
आज एक घटना ने इस सोच को और गहरा कर दिया। अस्पताल से लौटते समय, ट्रैफिक सिग्नल पर हमारी गाड़ी स्टॉप लाइन के पीछे खड़ी थी। जैसे ही हरी बत्ती हुई, आगे की गाड़ियाँ (जो पहले से स्टॉप लाइन पार कर खड़ी थीं) तेज़ी से निकलने लगीं। मेरे पति ने जैसे ही गाड़ी बढ़ाई, एक महिला ट्रैफिक पुलिसकर्मी, जो बिना वर्दी के थी, अचानक सामने आकर हमारी गाड़ी रोकती है और मोबाइल से तस्वीर लेने लगती है। जब मेरे पति ने शांति से कारण पूछा, तो बिना कोई स्पष्ट उत्तर दिए वह वहां से चली गई।
अब सोचने वाली बात यह है कि क्या इस प्रकार के कृत्य से अनुशासन बढ़ाया जा सकता है?
क्या सुधार का दायित्व केवल ईमानदार और नियमों का पालन करने वाले लोगों पर ही है?
क्या केवल टारगेट पूरा करने की नीति से देश में वास्तविक सुधार लाया जा सकता है?
अफसोस की बात यह है कि जो लोग नियम तोड़ते हैं, वे बच निकलते हैं और जो नियमों का पालन करते हैं, उन्हें दंड भुगतना पड़ता है। यह विडंबना केवल ट्रैफिक नियमों तक सीमित नहीं है, बल्कि हमारे समाज की अन्य व्यवस्थाओं में भी देखने को मिलती है। सरकारी कार्यालयों में ईमानदार व्यक्ति घंटों इंतज़ार करता है, जबकि जुगाड़ू लोग चंद मिनटों में काम निकलवा लेते हैं। करदाता अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा सरकार को देते हैं, जबकि कर चोरी करने वाले चैन से रहते हैं।
क्या यह व्यवस्था उन लोगों को हतोत्साहित नहीं कर रही जो सच्चाई और ईमानदारी से जीवन जीने में विश्वास रखते हैं? यदि नियमों को लागू करने का तरीका ही गलत होगा, तो आम जनता में व्यवस्था के प्रति विश्वास कैसे बना रहेगा? सुधार की प्रक्रिया निष्पक्ष और न्यायसंगत होनी चाहिए, अन्यथा समाज में ईमानदारी और अनुशासन का कोई मूल्य नहीं रह जाएगा।
अब समय आ गया है कि समाज और प्रशासन इस ओर ध्यान दे कि नियमों का पालन कराने के तरीके न्यायसंगत हों। किसी भी नागरिक के साथ अनुचित व्यवहार न हो और सुधार का भार केवल ईमानदार नागरिकों पर न डाला जाए। यदि अनुशासन और कानून के पालन को बढ़ावा देना है, तो पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि जो नियमों का पालन कर रहे हैं, उन्हें बेवजह परेशान न किया जाए, बल्कि वे सम्मान और प्रोत्साहन के पात्र बनें।
अन्यथा, वह दिन दूर नहीं जब ईमानदार और अनुशासित नागरिक भी यह सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि क्या सच में सही रास्ता अपनाने का कोई लाभ है?

शिखा

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!