यादों के आइने में जीजाजी — मंजू शर्मा

वक्त ने किया, क्या हसीं सितम
तुम रहे न तुम, हम रहे न हम
जाएंगे कहाँ,सूझता नहीं, चल पड़े मगर, रास्ता नहीं।
फिल्म ‘कागज के फूल’ का यह गीत जब भी कहीं मुझे सुनाई पड़ता है तो आँखों में आंसू आ जाते है। पल भर में जिंदगी क्या से क्या हो जाती है। एक हकीकत ऐसी भी जो भुलाने की कोशिश करो तो और याद आती है।वक्त के थपेड़ो से भला कौन बच पाया है।आने वाले पल को गुजर जाने से कौन रोक पाया है।कहते हैं, यादें कभी पीछा नहीं छोड़ती। वो हमेशा जिंदगी के साथ चलती हैं। लेकिन हमें एक सीख दे जाती हैं। जिंदगी जीने का कोई खास समय नहीं होता वक्त को हमेशा महत्व देना चाहिए। ये बंद मुट्ठी में रेत की भांति फिसल जाता है।ज़िम्मेदारियाँ कभी नहीं कहती अपने लिए समय निकालो उसे खुद चुराना पड़ता है। कुछ अधूरे सपनों को साकार करने की प्लानिंग शुरू हो चुकी थी। मिस्टर हरेंद्र शर्मा जी स्कूल में अध्यापक पद पर थे। एक महीने बाद रिटायर होने की खुशी उनके हरेक शब्द में झलकती थी। उन्हें लग रहा था आराम की जिंदगी जीने का समय आ गया। उन्होंने अपने रिटायर होने पर बड़ी सी पार्टी देने के लिए सारी बुकिंग पहले ही कर दी थी।सबको तारीख बताकर टिकट बनवाने के लिए भी बोल दिया ।सब बड़े खुश थे। उनके साथ दीदी भी ये सोचकर खुश थी अब हम पार्टी के बाद भारत भ्रमण पर निकलेंगे और सारे तीर्थ भी कर लेंगे। उनकी इस खुशी में सब शरीक होना चाहते थे। वो बस आजादी की बातें करते। मुझे बोले इस बार तुम आओगी तो हरिद्वार चलेंगे हम सब…मैंने मजाक में कहा, “देखो न जीजा जी शादी को 28 साल हो गए आज तक मुझे ये गोवा भी नहीं लेकर गए। वो बिना समय गंवाए बोले, “अरे तू क्यों चिंता करती है। बस एक साल रूक जा, मुझे रिटायर होने दे इस नौकरी से…मैं तेरे लिए गोवा में फ्लैट खरीद दूंगा तुम वहीं रहना। इतना सुनते ही सब ठहाका लगाकर हँस पड़े। मुझ पर वो हमेशा अपने बच्चों-सा स्नेह रखते । एक बार बड़ी मजेदार बात हुई घर आये हुए थे हम किचन में काम कर रहे थे। उनकी आदत थी वो एक जगह कभी नहीं बैठते। किचन में आकर बोले सुबह से काम में लगे हो तुम लोग…मुझे बताओ और क्या काम बाकी है। मैं कर देता हूँ।” मैंने भी मजाक में कह दिया जीजा जी बर्तनों की वाशिंग बची है और तो सब हो गया। वहाँ खड़े सब लोग हँसने लगे। वो प्रेम से सिर पर हाथ रखते हुए बोले मरजानी अब यही काम करवाएगी मुझसे… तभी दीदी बोल पड़ी तेरे लिए तो ये भी कर देंगे। कितने खुशियों भरे दिन थे वो जो स्मृतियों में कैद होकर रह गए।एक अप्रैल के दिन लोग एक-दूसरे को बेवकूफ बनाकर खूब हँसाते हैं।हालांकि किसी का मकसद गलत नहीं होता है।ऐसे ही हमारे जीजा जी जो अपनी हरियाणवी भाषा से सबको हँसाते रहते और जिंदादिल इतने कि किसी भी काम के लिए हर संभव प्रयासरत रहते। चाहे काम कैसा भी हो। जब भी जरा उदास या चिंतित नजर आते तो… उनका ये कहना संबल दे जाता कांधे पर किसी मजबूत हाथ-सा…”चिंता न किया कर मैं हूं ना”
वक्त ने किया, क्या हसीं सितम
तुम रहे न तुम, हम रहे न हम
जाएंगे कहाँ,सूझता नहीं, चल पड़े मगर, रास्ता नहीं।
फिल्म ‘कागज के फूल’ का यह गीत जब भी कहीं मुझे सुनाई पड़ता है तो आँखों में आंसू आ जाते है। पल भर में जिंदगी क्या से क्या हो जाती है। एक हकीकत ऐसी भी जो भुलाने की कोशिश करो तो और याद आती है।
पिछले साल एक अप्रैल को नवरात्रि के बाद की दसवीं तिथि थी।उस दिन स्कूल में हवन रखा गया था।सो जीजा जी जल्दी ही घर से चले गए और वहाँ पूजा का सारा काम होने के बाद सबको खाना खिलाया।उसी वक्त प्रिंसिपल मैम को बोले मैम! “अगले महीने मैं रिटायर होने वाला हूँ, सो आज से ही मुझे छुट्टी चाहिए मेरे सारे पेपर तैयार कर दो मैं ओर स्कूल नहीं आऊंगा।” पेपर वर्क कई दिनों से चल रहा था मैम बोली, “जी आपका सारा काम हो गया है। अच्छा आप ये बताएं । स्कूल से विदा होने की खुशी में आप अंतिम दिन स्कूल को क्या तोहफा देकर जायेंगे?”
तभी उनकी जुबान पर सरस्वती माँ आ बैठीं और शब्दों को इस तरह बुलवाया…मैम मेरी आखिरी इच्छा है। स्कूल में जो 15 लड़कियां फीस देने में असमर्थ हैं। उनकी एक साल की फीस मेरी सैलरी से काट ली जाए। ये सुनकर सभी अध्यापको ने तालियाँ बजाईं। तभी जीजाजी ने कहा मुझे घबराहट सी हो रही है। थोड़ा आराम चाहिए और जैसे ही लेटे…इतने में ही एक हिचकी आई और चल पड़े अपनी अंतिम इच्छा बताकर अंतिम यात्रा की और…सारा स्टाफ एकत्रित हो गया। कुछ ही मिनटों के हादसे से सब सहम गए। सारे स्टाफ में सन्नाटा छा गया। तुरंत एंबुलेंस का इंतजाम कर अस्पताल पहुंचे तो डॉक्टर ने ‘साॅरी’ बोल दिया।एक अध्यापक मित्र का कलेजा फट गया और आसमान को निहारता हुआ बोला।
“हे प्रभु! तेरी माया तू ही जाने,
अगले पल से सब अनजाने।
पल-भर में क्या-क्या रूप दिखाएं,
एक पल में किसी को इतना दूर ले जाए।”
ये कहता हुआ वो सोचने लगा किसको खबर करूँ?
बच्चे सारे बाहर… घर के अन्य लोगों के पास खबर आई सब वहां पहुँचे। सारे बच्चों को खबर पहुंची तो अगले ही पल तीनों बड़े हो गए। बच्चों ने बड़ी समझदारी दिखाते हुए संयम से काम लिया। घर में सभी लोगों को कहा… मम्मी, को कुछ भी न कहना जब तक हम न पहुँचे। दीदी को ये बोलकर संभाला दिल का दौरा पड़ा है आपरेशन चल रहा है ।आप कल चलना वहाँ। हमारे पास खबर आई मामाजी पापा नहीं रहे। कुछ देर तो कुछ भी समझ नहीं आया फिर फोन पर उस बच्चे को ही डांट दिया राहुल ऐसी बातों का मज़ाक नहीं होता। वो बोला काश मामाजी ये मजाक होता। इस अनहोनी को कोई स्वीकार नहीं कर पा रहा था लेकिन नियति के सामने किसका जोर चलता है।
फिर से अप्रैल आ गया यादों को ताजा करने।
जिंदगी ने इस तरह करवट बदली। घर और शहर क्या, देश ही छोड़कर विदेश रहते बच्चों के पास जाना पड़ा। आज लंदन और मैनचेस्टर की खिड़की में खड़ी दीदी यही सोचती हैं। ऐसा होगा ये तो अभी दूर-दूर तक नहीं सोचा था।आप मुझे इस तरह अप्रैल फूल बना जाएंगे।
मैंने तो हर सपना आपके संग बुना था। जिसमें कितने ही अभी अधूरे थे और आप चल पड़े यूं मझधार में छोड़। सुख के दिनों को तन्हाइयों में तब्दील कर।
मंजू शर्मा
उड़ीसा