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अंतरराष्ट्रीय मंच साहित्योदय की राजस्थानी इकाई की ऑनलाइन काव्य गोष्ठी में पहलगाम हमले पर कवियों ने व्यक्त की संवेदना

 

जयपुर, 24 अप्रैल 2025। अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक मंच साहित्योदय की राजस्थानी इकाई द्वारा एक विशेष ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन आज दिनांक 24 अप्रैल 2025 को किया गया। इस गोष्ठी की अध्यक्षता प्रख्यात साहित्यकार डॉ. कंचना सक्सेना ने की, जबकि संचालन की बागडोर कुशल साहित्यसेवी डॉ. अंजु सक्सेना ने संभाली। यद्यपि गोष्ठी का कोई निश्चित विषय निर्धारित नहीं था, परंतु 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए दर्दनाक आतंकी हमले ने समस्त साहित्यकारों के हृदय को व्यथित कर दिया। इसी कारण अधिकांश रचनाकारों ने अपनी कविताओं के माध्यम से इस दुखद घटना में शहीद हुए भारतीय नागरिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की और अपनी संवेदनाएं प्रकट कीं। गोष्ठी की शुरुआत डॉ. रेखा गुप्ता द्वारा मां शारदे की वंदना “ज्ञान का वर दो, खाली झोली भर दो माँ” से हुई। इसके पश्चात विभिन्न कवियों ने अपनी हृदयस्पर्शी रचनाओं से सभी को भावविभोर कर दिया। तथा प्रमुख प्रस्तुतियाँ नम्रता शर्मा नाथ तुम्हारे जग में मुझको पग पग मिलती है उलझन डॉ. रेखा गुप्ता बचपन की वह याद सुहानी वादी की डल झील सुहानी ,अनुराधा माथुर “मानवता का नाश किया है। मीता जोशी धर्मांधता की अति हो गई, इंसा को इंसा ना समझा ललिता भोला जख्म पर जख्म दिए जा रहा है शत्रु , पुष्पा माथुर तुमने यह क्या किया, प्राकृतिक सौंदर्य विकृत किया
प्रदीप भारद्वाज लहरों का उन्माद हमेशा तट को सहन होता है। शशि सक्सेना,मुट्ठी भर खुशियां लेने गए थे
निशा बुधे धूप छुती है कोई पंख, कोई चुपचाप बहती यह धारा है
राव शिवराज हरे चिनार के पत्तों को खूनी रंग में रंग डाला । कमलेश शर्मा निराशा का दौर है, कलम कुछ उदास है, पवनेश्वरी वर्मा: “धर्म हिंदुस्तान हो, जाति हिंदुस्तान हो, नीता भारद्वाज सभ्यता हमारी नित नई लगती है अर्चना माथुर मन की पीर किससे कहूँ डॉ. अंजु सक्सेना कितनी बार चुप रहेंगे हम, हर बार कटा गला हमारा डॉ. कंचना सक्सेना बात-बात में बात बनी क्या, नहीं बनी और ना बनेगी गोष्ठी में साहित्योदय के संस्थापक पंकज प्रियम जी की गरिमामयी उपस्थिति भी रही, जिन्होंने पुलवामा शहीदों पर अपनी मार्मिक रचना प्रस्तुत कर सभी को भावुक कर दिया। गोष्ठी के अंत में इकाई अध्यक्ष डॉ. कंचना सक्सेना ने सभी रचनाकारों और श्रोताओं का आभार व्यक्त किया। यह गोष्ठी न केवल साहित्यिक दृष्टि से समृद्ध रही, बल्कि देशप्रेम और मानवीय संवेदनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति का मंच भी बनी।

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