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सिंर्फ़ जाति नही, राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के लिए आवश्यक है कर्तव्य आधारित जनगणना — जे पी शर्मा

 

आज जब जाति आधारित जनगणना को लेकर बहस तेज हो गई है, एक मूलभूत सवाल देश के हर जागरूक नागरिक के मन में उठता है क्या जनगणना केवल जातियों की होनी चाहिए या उस असली भारत की, जो अपने कर्तव्यों और योगदान से राष्ट्र की नींव को मजबूत करता है। क्या जरूरी नहीं कि अब गिनती हो उन नागरिकों की जो ईमानदारी से टैक्स चुकाते हैं, जिससे देश की योजनाएँ चलती हैं।
उन युवाओं की जो रक्तदान और अंगदान जैसे पुण्य कार्यों में आगे रहते हैं। उन वीर सैनिकों और उनके परिवारों की, जो अपने प्राणों की आहुति देकर देश की रक्षा करते हैं। और उन किसानों की, जो अन्नदाता हैं। उन समाजसेवियों की, जो बिना किसी स्वार्थ के देश का चेहरा बदलने की कोशिश कर रहे हैं।
उन नवाचारियों और वैज्ञानिकों की, जो भारत को विश्वमंच पर ले जा रहे हैं। साथ ही गिनती हो उन लोगों की भी, जो गुंडागर्दी, भ्रष्टाचार, राष्ट्रविरोधी नारेबाजी व पत्थर फेंकने में लिप्त हैं।अगर हम केवल जाति की गिनती करेंगे, तो यह अधूरी तस्वीर होगी। देशहित में यह ज़रूरी हो गया है कि हम यह जानें कि कौन नागरिक राष्ट्र निर्माण में भागीदारी कर रहा है और कौन केवल उपभोग कर रहा है।आज हर लाभ के लिए जाति पूछी जाती है, मगर कर्तव्य के लिए कोई प्रश्न नहीं किया जाता। यह प्रवृत्ति देश को एक गलत दिशा में ले जा सकती है।
इसलिए अब समय आ गया है कि जनगणना हो कर्तव्य निभाने वालों की
राष्ट्र की सेवा करने वालों की और राष्ट्रद्रोहियों की पहचान की। जातीय आंकड़े सामाजिक संतुलन के लिए उपयोगी हो सकते हैं, लेकिन एक कर्तव्य आधारित जनगणना’ देश को प्रगति के सही पथ पर ले जाएगी।
अब सवाल यह नहीं कि आप कौन जाति के हैं, बल्कि यह होना चाहिए कि आपने देश के लिए क्या किया है।
जे पी शर्मा / जर्नलिस्ट

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