वो यात्रा — लता शर्मा तृषा

मैं छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में कक्षा नौ में पढ़ती थी दीदी के पास रह कर। दीदी ,मैं और दीदी की छै माह की बच्ची,पिताजी जगदलपुर की बस से यात्रा कर रहे थे, जगदलपुर रोड़ अती घुमावदार घाटी पहाड़ों जंगलों से होकर गुजरती है। अभी तो रोड़ चौड़ी बहुत अच्छा हो गया है पहले रोड़ संकरी भी थी ।
सुबह के करीब सात आठ बजा होगा जब बस घुमावदार अति दुर्गम,डरावनी घाटी से गुजरी जैसे ही आखरी मोड़ आया बस का बैंलेस बिगड़ा जब तक ड्राइवर गाड़ी संभालता बस घाटी में झुक गई ,और हम सभी यात्री डर से चीखने चिल्लाने लगे मैं एक आम के डाल पकड़ लटक गई जो रोड़ के किनारे ही था।बाबूजी रोड़ में गिर गये दीदी को बहुत चोट आई मगर भगवान की कृपा से दीदी की बेटी को कुछ नहीं हुआ वो सीट के नीचे गिरी जरुर मगर आराम से सोई रही। सभी यात्रियों को बहुत चोट आई किसी का सर तो किसी का हाथ,पैर टूट गये थे ।
मैं बड़ी मुश्किल से पेड़ पर से उतर सकी लोगों की मदद से। उस दुर्घटना की याद कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
लता शर्मा तृषा