मां — राजेन्द्र परिहार “सैनिक”

मां — राजेन्द्र परिहार “सैनिक”
मैं इक बूंद “मां”संपूर्ण सागर,मां को कैसे लिख पाऊं मैं।
मैं फल हूं मां एक संपूर्ण वृक्ष है ,को कैसे लिख पाऊं मैं।
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मां का महिमा मां की ममता का बखान कर पाना शायद
असंभव ही प्रतीत होता है। वो नजर मेरे पास कहां जो मां के अनंत ममत्व व वात्सल्य का आकलन कर पाए। मां का प्यार तब से आरंभ हो जाता है जब बच्चा गर्भ में बीज रूप में ही होता है।मां के चेहरे की रौनक बता देती है हां वो गर्भवती है। भ्रूण अवस्था से ही मां अपने शिशु का ख्याल रखना शुरू कर देती है,, कैसे उठना है कैसे बैठना है?? कौनसा काम करना है, कौनसा नहीं करना है?? बच्चे की अच्छी सेहत के वास्ते क्या खाना चाहिए और कौनसी वस्तु का परहेज़ करना चाहिए।गर्भावस्था में भी बच्चे की लात से खुश होती है। नौ माह तक वो
गर्भावस्था के दौरान कितने ही कष्ट खुशी खुशी सहती है मां!!भगवान हैं अथवा नहीं.किंतु मां के रूप में मैंने भगवान को देखा है हमने। उसकी कोख से जन्म लिया, उसके अमृत तुल्य स्तनपान से यह शरीर विकसित हुआ। स्वयं दुःख दर्द सहती रही और हमारी ओर देख कर मुस्कुराती रही वो मां ही थी।मां बहुत भूख लगी है,, इतना सुनते ही अपनी परेशानियां भूलकर चुल्हे में खुद को झौंकती रही। हमारी हर जरूरत पर जो हाजिर रही , वो मां ही थी। हमारे बिना कहे भी मन की बात
भांप लेती थी वो मां ही थी। पिता के क्रोध से बचाने के लिए आंचल में छुपा लेती वो मां ही थी। हमारी हर खुशी में खुश और हर दुःख में परेशान होने वाली वो मां ही थी। क्रोधावेश में स्वयं भले ही मार ले, लेकिन किसी और को मारने नहीं देती वो मां ही थी। मां एक संपूर्ण ग्रंथ समान और मैं उसका एक पन्ना मात्र हूं,किस विधि मां को लिख पाऊं..??मां तो सबसे ख़ास एक अहसास है,बस महसूस ही कर पाऊंगा।
राजेन्द्र परिहार “सैनिक”