काव्य की ललक — महेन्द्र कुमार सिन्हा

मैं और मेरा छोटा सा सुन्दर गाँव तरीघाट पाटन जिला दुर्ग छत्तीसगढ़ पहले मध्यप्रदेश में था। मेरे गाँव खारून नदी के किनारे बसा हुआ है।गाँव में नीम पीपल वट गश्ती ईमली सीताफल ,जाम,आम बगीचा बबूल की पेड़ बहुत है । माता पिता दादी भाई-बहनों का बहुत स्नेह भरा बचपन था। रामचरित मानस रामधुनी हरि कीर्तन की तरफ बचपन से ही लगाव रहा है। हमारे गाँव में गायत्री यज्ञ हुआ तब करीब 10/ 11 वर्ष रहा था। परम् पूज्य गुरुदेव श्री राम शर्मा आचार्य जी शाँति कुंज हरिद्वार के यज्ञकरता टोली आये थे। यज्ञ बहुत अच्छी तरह सम्पन्न हुआ। मेरे बाल मन में गायत्री माता व गुरुदेव एवम् वंदनीय माता के प्रति श्रद्धा भाव जगा।गायत्री की छवि रख कर चालीसा पाठ ,गायत्री महामंत्र की जाप करने लगा। समय बीतता गया ना जाने मन में “काव्य की ललक” बढ़ती गयी।
पठन पाठन फिर छोटी छोटी रचना लिखने लगा। माँ दुर्गा की विसर्जन के समय लिखा पढ़ा – माँ दुर्गा की पूजन कीजिए।
श्रद्धा सुमन सब अर्पण कीजिए। ।
होली गीत , देश भक्ति गीत ,भक्ति गीत, भजन, लोक गीत लिखने लगा।
देश भक्ति गीत रचना
“वीरों की ये धरती ”
वीरों की ये धरती है,जवाहर गाँधी का है ये वतन।
खुशियों से भरा ये गुलशन है, सुख शाँति का है चमन।
मन की बात लिख लिख कर रखता था किसी को नहीं बताता था ।
सोशल मीडिया के माध्यम से और बहुत से साहित्यिक मंचों पर काव्य की ललक को पूरा करने का निरंतरता जारी है।