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राजेन्द्र परिहार जी – बहुमुखी प्रतिभा के धनी एक प्रेरणास्रोत व्यक्तित्व – जे पी शर्मा की कलम से

 

भारत मां की सेवा करते हुए वर्षों तक सीमा सुरक्षा बल (BSF) में अपना कर्तव्य निभाने वाले श्री राजेन्द्र परिहार जी आज एक सशक्त, संवेदनशील और बहुमुखी प्रतिभा के प्रतीक बन चुके हैं। राष्ट्र सेवा के पश्चात उन्होंने अपने भीतर के रचनात्मक कलाकार को पूरी तरह से विकसित किया और समाज के सामने एक आदर्श स्थापित किया। जहाँ एक ओर राजेन्द्र परिहार जी ने देश की सीमाओं की रक्षा करते हुए वीरता और अनुशासन का परिचय दिया, वहीं दूसरी ओर उनके भीतर एक कोमल, रचनात्मक हृदय भी विद्यमान रहा। सेवानिवृत्ति के पश्चात उन्होंने जिस प्रकार साहित्य और कला के क्षेत्र में अपने आपको समर्पित किया, वह प्रशंसनीय है। पेंटिंग में उनकी महारत उन्हें एक उत्कृष्ट चित्रकार बनाती है। उनकी कलाकृतियाँ प्रकृति, मानव जीवन और संवेदना के रंगों से भरी होती हैं। ब्रश की एक-एक रेखा में उनका अनुभव, भावना और दृष्टिकोण झलकता है।
राजेन्द्र परिहार जी उच्च कोटि के कवि हैं, जो हर विधा में समान गति से लेखनी चलाते हैं — चाहे वह गीत हो, ग़ज़ल हो, मुक्तक, दोहे, नवगीत, या छंदबद्ध रचनाएं। उनका काव्यलोक भावनाओं की गहराइयों से सराबोर होता है और पाठकों को सीधे हृदय में उतर जाता है। उनकी रचनाओं और जीवनशैली में प्रकृति के प्रति गहरा प्रेम स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। वृक्ष, पुष्प, नदियाँ, पहाड़ – सब उनके शब्दों में जीवंत हो उठते हैं। वे न केवल एक अच्छे कलाकार और कवि हैं, बल्कि आदर्श पति और पिता भी हैं। उनका जीवन संतुलन, समर्पण और परिवार के प्रति उत्तरदायित्व का सुंदर उदाहरण है। उनका मृदु व्यवहार हर किसी को आकर्षित करता है। सहज, विनम्र और सबको साथ लेकर चलने वाले राजेन्द्र परिहार जी वास्तव में सामूहिक चेतना के प्रतीक हैं। वे सभी को प्रोत्साहित करते हैं, और हर रचनाकार के लिए एक पथप्रदर्शक के रूप में सामने आते हैं। आज वे जहाँ भी जाते हैं, उनकी तारीफ़ हर व्यक्ति के मुख से स्वतः निकलती है। उनका जीवन, उनकी कला और उनका साहित्य हमें यह सिखाता है कि अनुशासन, संवेदना और सृजनात्मकता से जीवन को सार्थक और प्रेरणास्पद बनाया जा सकता है। राजेन्द्र परिहार जी वास्तव में एक ऐसा नाम है जो साहित्य, कला, राष्ट्रसेवा और पारिवारिक मूल्यों का संगम है। उनके जैसे व्यक्तित्व समाज के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं। सादर नमन ऐसे कर्मयोगी, कला साधक और संवेदनशील व्यक्तित्व को।

जे पी शर्मा / जर्नलिस्ट

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