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लघु कथा – गरीबी में आटा गीला – सीमा त्रिपाठी

 

नंदू काका किसान थे पत्नी और दो बेटियां पढ़ाई का खर्चा और परिवार की जिम्मेदारी उनके कंधों पर थी नंदू काका मेहनती थे किसी तरह दिन रात परिश्रम करके घर और बच्चो की जरूरतें पूरी करते नंदू काका अपनी बड़ी बेटी के विवाह के लिए अत्यंत चिंतित थे जहां विवाह की बात होती वर पक्ष वाले भर भर के नगद रकम मांगते लेकिन विवाह तो करना ही था ठीक ठाक घर मिल गया तो नंदू काका ने अपनी बेटी का विवाह पक्का कर दिया और सगाई की रस्म भी पूरी की। सब खुश थे दो महीने बाद विवाह की तारीख तय की जिससे सारा परिवार खुश था क्योंकि इस बार उसकी फसल अच्छी तैयार हुई थी उन्होंने सोचा बस फसल तैयार होते ही बेच दूंगा विवाह में पैसों की परेशानी नहीं होगी वह गांव के जमीदार से फसल बेचने की बात करने गया जमींदार अच्छे दाम में फसल लेने को तैयार हो गया।
जमींदार से बात करके नंदू काका घर वापस लौट रहे थे बेटी के विवाह के सपने बुनते हुए तभी बड़ी जोर से बादलों की गड़गड़ाहट के साथ तेज बारिश शुरु हो गई नंदू काका का तो दिल ही बैठ गया भगवान से प्रार्थना करते हुए किसी तरह घर पहुंचा लेकिन दुर्भाग्य और होनी को कौन टाल सकता है बेमौसम बरसात ने रुकने का नाम नही लिया जिससे उसकी सारी फसल बर्बाद हो गई और पत्थर गिरने से आम के पेड़ पर लगे बौर भी झड़ गए नंदू काका के पास अब कोई रास्ता नही था नकद रकम का इसी कारण बेटी के ससुराल वालो ने विवाह के लिए मना कर दिया इस समय नंदू काका असहनीय पीड़ा का अनुभव कर रहे थे किसी ने ठीक ही कहा “गरीबी में आटा गीला”
नंदू के सारे सपने टूट गए ये तो कहावत है”गरीबी में आटा गीला”लेकिन कभी कभी गरीबो के लिए यह सत्य साबित होती है।

सीमा त्रिपाठी
लखनऊ उत्तर प्रदेश।

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