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मिला मुझे, अस्तित्व मेरा…ज्योत्सना पांडेय

मैं तो महज परछाई
पापा, आप पहचान मेरी…
हम बच्चे महज फूल
आप जड़ तथा जमीन हमारी…
बहुत दूर ही सही
दुआओं का असर होता, बराबर
चाहे रहूं मैं जहां भी…
आपसे पाया जिस्म,
जिस्म को जान बनाने में
जी जान लगा दिए आपने,अपनी
वक्त ने बदला रंग ढंग
वक्त के साथ बदलना सिखाया
आपने , छोटी सी जिंदगी के
होते अनेकों आयाम…
वक्त पड़ने पर बदल जाना
यह न था मेरे लिए भी इतना आसान…
मान मेरा, स्वाभिमान मेरा…
छूटते छोड़े रिश्तों में
जीने का आधार मेरा
आपसे ही मिला जिंदगी का सार मेरा
आपसे हूं मैं….
आपसे मिला मुझे…
अपना आस्तित्व मेरा
ज्योत्सना पांडेय
गया, विहार