रमजान — ललिता भोला “सखि “

बात नवमी कक्षा की है ! गर्मी का मौसम था विद्यालय में नित्य की तरह पढ़ाई हो रही थी मास्टरजी पढ़ाकर कक्षा से बाहर गये ही थे कि सभी विद्यार्थी फिर से शोर शराबा करने लग गए!
सभी को चुप करवाने तथा कक्षा को व्यवस्थित रखने की जिम्मेदारी हमारी मॉनिटर गुड्डी जिन्हें हम गुड्डी दीदी भी कहते थे उनकी थी !
गुड्डी दीदी ने आवाज लगाई अरे चुप रहो सब ये बाजार नही है क्लास है समझो सब , नही तो तुम सभी का नाम लिख कर हेड सर को दे दूंगी! वो चिल्लाती रही पर कोई सुनने को तैयार नही ,इसपर गुड्डी दीदी अपनी जगह से उठ खड़ी हुई और बोर्ड के सामने जाकर जैसे ही मुड़ी चक्कर आ गया वो लड़खड़ाई इतने में लड़कियों ने संभाल लिए और उन्हें बैंच पर बिठाया कोई पंखा झल रही थी कोई पसीना पोंछती! पूरी कक्षा में सन्नाटा छा गया था ! सभी को बता दिया गया गुड्डी दीदी ने रोजा रखा है पानी भी नही पीते हैं इस उपवास में!
अब सभी विद्यार्थियों को समझ आ गया था और ये भी समझ आ गया था कि अनुशासन में ही रहना है जबतक रोजा है मॉनिटर को परेशान बिल्कुल भी नही करना है!उस दिन से हम सभी मोनिटर का ध्यान रखते थे ताकि उन्हें ज्यादा बोलना न पड़े और उन्हें प्यास न लगे!
रोजा बीतने के बाद फिर से वही दिनचर्या शुरू लंच बॉक्स में छीना-झपटी किसका लंच किसके पास पता ही नही होता ! पता तो चलता जब , खाली हो जाने पर ! अगर कोई भेलपुरी (कन्हैया भैया का भाजा ) ले आया तो कागज के टुकड़े किसी के हाथ , किसी के हाथ मुट्ठी भर भेलपुरी!
आज महंगे होटल के खाने में भी वो बात नही,जो बचपन के इन यादों के मिठास में है !
आज हम सभी सहपाठी अपने अपने पारिवारिक जीवन जिम्मेदारियों में व्यस्त अवश्य हैं इसके बावजूद
शबाना,अहाना , गुड्डी दीदी,शमा परवीन, नरगिस, फरहा तथा सभी सहपाठी आज जहां भी हैं यादों में हमेशा साथ रहती हैं !फरहा से तो कभी कभी बात हो जाती है , और भी कुछ सहपाठी अक्सर फोन कर हाल समाचार पूछा करती हैं बचपन की यादें फिर से ताजा हो जाती है । खिलखिलाहट बनी रहती है चेहरे पर ,बचपन फिर जीवंत हो उठता है!
ललिता भोला “सखि “