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सद्गुरु: साक्षात परमात्मा का रूप — शिक्षाविद् एवं अधिवक्ता दीपक शर्मा

 

“गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥”
भारतीय अध्यात्म परंपरा में गुरु को ईश्वर के समकक्ष नहीं, बल्कि साक्षात ईश्वर का ही रूप माना गया है। जब साधक अपने जीवन में दिशा खोज रहा होता है, जब वह भ्रम और अंधकार में डूबा होता है, तब सद्गुरु ही वह प्रकाश होते हैं जो उसे आत्मज्ञान, शांति और मोक्ष के पथ पर ले जाते हैं। ऐसे सद्गुरु केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक चेतना होते हैं
परमेश्वर की जीवंत उपस्थिति।
माता-पिता: जीवन के प्रथम गुरु
हमारे जीवन की प्रथम पाठशाला हमारे माता-पिता होते हैं। विशेष रूप से माँ, जो केवल जन्म नहीं देती, बल्कि संस्कार, अनुशासन, प्रेम और विश्वास की बीजवपन करती है। माँ के भीतर स्वयं सृजन का वह रहस्य छिपा है जो सृष्टि को संभव बनाता है। वह अपने त्याग, तपस्या और सेवा से संतान के जीवन में वह आधार देती है जिस पर उसका संपूर्ण व्यक्तित्व खड़ा होता है।
समय-समय पर जीवन हमें ऐसे अवसरों और व्यक्तित्वों से परिचित कराता है जो सीधे तौर पर हमारे शिक्षक नहीं होते, परंतु उनके शब्द, निर्णय और कर्म हमें किसी न किसी रूप में दिशा देते हैं। न्याय करने वाला व्यक्ति हमें धर्म और अधर्म का भेद सिखाता है। अधिकारों की चेतना हमें आत्मसम्मान की भावना जगाती है। और अनुभव, चाहे सुखद हों या दुःखद, हमें सत्य के और निकट लाते हैं।
सद्गुरु की कृपा: जीवन के लक्ष्य की कुंजी है ।
सद्गुरु की कृपा मात्र उपदेश नहीं है, वह एक ऊर्जा है जो आत्मा को झकझोर कर जाग्रत कर देती है। उनका स्पर्श, उनका दृष्टिकोण, और उनके विचार साधक के अंतर्मन में गहराई तक उतर जाते हैं। वह हमें हमारे ही भीतर छिपे परमात्मा से परिचित कराते हैं। वे बताते हैं कि लक्ष्य कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारे स्वरूप में ही स्थित है।
जो व्यक्ति इन सभी रूपों में गुरु को देख पाता है — माँ में, पिता में, शिक्षक में, जीवन की कठिनाइयों में और सबसे बढ़कर सद्गुरु में — वह न केवल ज्ञान प्राप्त करता है, बल्कि उसे मोक्ष का द्वार भी दिखाई देने लगता है। ऐसे सद्गुरु को, और उनके हर रूप को जब हम सादर वंदन करते हैं, तो वह श्रद्धा आत्मा को पवित्र कर देती है और जीवन को पूर्णता की ओर ले जाती है।
सद्गुरु केवल कोई मानव शरीर में उपस्थित ज्ञानी नहीं हैं, वे एक जाग्रत चेतना, एक जीवंत प्रकाश, एक दिव्य मार्गदर्शक हैं, जो जीवन के हर रूप में प्रकट हो सकते हैं। जब हम माँ को, पिता को, अपने अनुभवों को, और अंततः अपने सद्गुरु को परमेश्वर के रूप में देख पाते हैं, तभी हम सच्चे अर्थों में धर्म, भक्ति और जीवन के उद्देश्य को समझ पाते हैं।
“गुरु की कृपा से ही आत्मा को परमात्मा का साक्षात्कार होता है।”
“परमपिता बाबा “सद्गुरु को सादर प्रणाम।
शिक्षाविद् एवं अधिवक्ता दीपक शर्मा ।

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