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अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस पर विशेष —— शिक्षाविद् एवं अधिवक्ता दीपक शर्मा

हम 17 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस
(International Justice Day) के रूप में मनाते हैं, तब यह अनिवार्य हो जाता है कि हम न केवल इस दिवस के ऐतिहासिक महत्व को समझें, बल्कि इसकी वर्तमान प्रासंगिकता और आने वाले समय में इसकी दिशा को भी गहराई से चिंतन करें।
यह दिन 17 जुलाई 1998 को रोम संविधि (Rome Statute) पर हस्ताक्षर की स्मृति में मनाया जाता है, जिसके माध्यम से अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय (ICC) की स्थापना हुई। यह दिवस केवल एक संस्थागत स्थापना का उत्सव नहीं है, बल्कि यह न्याय, मानवाधिकार, और अंतरराष्ट्रीय उत्तरदायित्व की उस वैश्विक भावना का प्रतीक है, जो विश्व के हर नागरिक को समान मानवीय गरिमा का आश्वासन देता है।

आज की दुनिया में जब युद्ध अपराध, मानवता के विरुद्ध अपराध और नरसंहार जैसी घटनाएं निरंतर बढ़ रही हैं, तब अंतरराष्ट्रीय न्याय प्रणाली का अस्तित्व एक नैतिक अवलंब की तरह हमारे सामने आता है। यह दिवस हमें यह स्मरण कराता है कि अपराध कितना भी सशक्त क्यों न हो, यदि वैश्विक समुदाय एकजुट हो, तो न्याय सुनिश्चित किया जा सकता है। जैसे आज आतंकवाद के ख़िलाफ़ भारत के साथ पूरा विश्व एक जुट है।
इस दिन की उपयोगिता न्यायिक प्रणाली को सशक्त बनाने, न्याय तक सभी की पहुँच सुनिश्चित करने तथा न्याय के नाम पर हो रहे राजनैतिक हस्तक्षेपों पर भी चिंतन करने का अवसर प्रदान करता है ।
वर्तमान काल में न्याय का अर्थ केवल अपराध और दंड की सीमा में नहीं सिमटा है, बल्कि यह सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय न्याय की ओर भी बढ़ा है।

आज हमें यह स्वीकार करना होगा कि—
न्याय प्रक्रिया में देर न्याय के समान अन्याय बनती जा रही है।
डिजिटल युग में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता के अधिकार के मध्य संतुलन स्थापित करना नई चुनौती है।
न्याय की पहुँच आज भी वंचित वर्गों तक सीमित रूप से हो पाती है।

यह अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस हमें इस दिशा में आत्मनिरीक्षण और सुधार की प्रेरणा देता है।
न्याय व्यवस्था को अब और अधिक समावेशी, पारदर्शी एवं जन-सुलभ बनाए जाने की आवश्यकता है।
प्रौद्योगिकी का न्याय क्षेत्र में न्यायोचित उपयोग एक अनिवार्य दिशा बन चुका है।
साथ ही, नैतिक शिक्षा और संवैधानिक मूल्यों को समाज के प्रत्येक स्तर पर पुनर्स्थापित करना भी न्यायपूर्ण समाज की ओर एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

इस अवसर पर सभी शिक्षाविदों, विधिवेताओं, न्यायाधीशों और आम नागरिकों से आह्वान करता हूँ कि हम सभी मिलकर इस दिवस को केवल एक प्रतीकात्मक आयोजन न मानें, बल्कि इसे सामाजिक न्याय के संकल्प दिवस के रूप में अपनाएँ। न्याय न केवल अदालतों में, बल्कि हमारे विचारों, कार्यों और सामाजिक व्यवहार में भी परिलक्षित हो — यही इस दिवस की सच्ची उपयोगिता और सार्थकता है।

धन्यवाद।
क़लम से -शिक्षाविद् एवं अधिवक्ता दीपक शर्मा

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