नाग पंचमी पर विशेष __डॉ सरिता चौहान

प्रकृति की हर चीज को हम सम्मान देते हैं। नाग देवता भी प्राणी जगत के कुछ ऐसे ही प्राकृतिक धरोहर हैं। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है । इस दिन सुबह जल्दी उठकर शीघ्रता पूर्ण घर की साफ सफाई कर स्नान करके स्वच्छ हो जाते हैं ,उसके बाद नाग देवता को दूध और धान का लावा कटहल के पत्ते पर चढ़कर नाग देवता की पूजा की जाती है। तत्पश्चात प्रसाद स्वरूप पूआ पकवान या मीठा भोजन बनाते हैं ।ऐसी भी मान्यता है कि इस दिन से त्योहारों की शुरुआत होती है इसीलिए मीठे भजन से शुरुआत करते हैं । इस दिन शिव जी की पूजा का विशेष महत्व है। नाग देवता की पूजा शिव जी के आभूषण के रूप में की जाती है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि नाग देवता इतने शक्तिशाली हैं कि उदाहरण के तौर पर हम शेषनाग को लें जिनके फन पर संपूर्ण पृथ्वी टिकी हुई है। हिंदू पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी के पुत्र ऋषि कश्यप की चार पत्नियों थीं जिनमें से तीसरी पत्नी नागवंश से थी और उनके संतान के रूप में नाग उत्पन्न हुए। हिंदू पुराणों के अनुसार नाग लोक पाताल लोक में स्थित है। हिंदू पुराण में पाताल लोक की संख्या 7 बताई गई है १-अतल २-वितल ३-सुतल ४- रसातल ५-तलातल ६- महातल ७- पाताल।
इन सात पाताल लोकों में महातल में नाग देवताओं का वास माना गया है।
अब आते हैं इनके जीव वैज्ञानिक महत्व की तरफ—-यह पृष्ठ वंशी सरीसृप वर्ग के प्राणी हैं। यह जल तथा स्थल दोनों जगहों में पाए जाते हैं। दुनिया भर में इनकी 2500 से 3000 प्रजातियां पाई जाती हैं। प्राचीन काल में सर्पदंश से उत्पन्न विष को दूर करने के लिए कई प्रकार की आयुर्वेदिक औषधियां प्रयुक्त की जातीं थीं। वातावरण को शुद्ध और स्वच्छ रखने के लिए प्राणी जगत में इनका संरक्षण नितांत आवश्यक है।
डॉ सरिता चौहान
प्रवक्ता हिंदी
पीएम श्री एडी राजकीय कन्या इंटर कॉलेज गोरखपुर उत्तर प्रदेश ।