लघुकथा….”शिकायत” — नरेंद्र त्रिवेदी
बीस दोस्त मिले और बातचीत की, की हम हररोज पत्नि की शिकायत सुनते है को वो नही किया ये नही किआ। क्या सब मुझे अकेली को ही करना है। दोस्तो ने फैसला किया की हमें पत्नी के साथ एक दिन के छोटे दौरे का आयोजन करना चाहिए और अपनी पत्नियों को घर की चर्चा के विषय को देना चाहिए ओर बोलना चाहिये की अपनी बातें आपसमे शेर करे, बाद में हमको बताना की आप लोकोने किसके बारे में चर्चा की।
तय किए गए दौरे का आयोजन किया और पत्नियों से घर पर चर्चा करने के लिए कहा। सभी पत्नियों द्वारा प्रस्तुत की गई शिकायत अपने पति के खिलाफ ही शिकायतें थीं …. सबने बोला मेरे पति किसी भी तरह की मदद की नही करते, घर पर बच्चों पर ध्यान नही देंते, कम संचार है, ऑफिस से आते ही मोबाइल में व्यस्त रहते है, आदि आदि।
चर्चा पूरी होने के बाद महिला वर्ग से अपने पति को पूछा गया कि आपने हमारी शिकायत के बारे में क्या शिकायत है।
जवाब था …. हमे कोई शिकायत नहीं है …. हम जानते हैं कि हमारी स्मृति आपकी शिकायत में छिपी हुई है। इसलिए तो ये दौरे का आयोजन किया था। सभी पत्निया एक दूसरे के मुँह को ताकती रह गई।
नरेंद्र त्रिवेदी।(भावनगर-गुजरात)