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गांव की यादें, धरोहर / जानीमानी लेखिका , कवियित्री व शिक्षिका उर्मिला पाण्डेय की कलम से

गांव की यादें, धरोहर / जानीमानी लेखिका , कवियित्री व शिक्षिका उर्मिला पाण्डेय की कलम से

धरोहर रखीं हैं गांव की यादें।
याद आतीं हैं मुझको गांव की यादें।
मेरे घर के बाहर थी फुलबारी,
बेला चमेली गुलाब की सुवास न्यारी।
आम के पेड़ बहुत ही निराले,
उसपे बैठ बोले कोयल के पर काले।
बौर बौर आवे जब नीम अमवा पे,
खुशी छाय जाय मोर जियरवा पे।
अमवा के बृक्ष सावन माहि झूला झूलें,
पकी पकी निवोरी मन को खूब भावें।
बसंत में अलसी खड़ी लिए कलसी,
मेरो मन मोहे अलसी की कलसी।
चलती बसंती हवा संग में बसंत लिए।
बेला चमेली महक संग व्यार मन मोह लिए।
एक बड़ा पीपल का वृक्ष था निराला,
पीपल के पात सम मन सबका डोला।
सबमिलजुल करते थे हरि कीर्तन,
आता था नाम जपने में अति आनन्द।
सांझ मांहु पौरि मा झुण्ड के झुण्ड मिलकर।
गाते बजाते राधे का नाम रटते जाते थे मन्दिर।
मिलजुल पूजा कर आते थे एक गांव।
कितना बरसता बन्धुत्व भाव एक ठांव।
अबतो सब उल्टा-पुल्टा ही हो रहा है।
भाई से भाई भी अलग ही जा रहा है।
होवे न मन बस में गांव छवि देखन कों,
अब ना जाय पाऊं आम नीम छवि देखन कों।
धरोहर के रूप मांहु धरीं हैं सब यादें।
हिय मांहु हिलोरें लेवें गांव की फरियादें।
जब गांव आती मेरे मन आग लगाती,
हम काहे कूं आएशहर गांव की यादें बुलातीं।
धरोहर धर राखीं,नीम की निवोली,
सरोवर कमल खिले शोभा निराली।
चहुं ओर हरियाली कैसी छटा निराली,
मोर पपीहा बोले, बोले कोयलिया काली।।
उर्मिला पाण्डेय कवयित्री मैनपुरी उत्तर प्रदेश।

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