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कर्ण का संघर्ष // अनामिका दुबे “निध” की कलम से

कर्ण का संघर्ष // अनामिका दुबे “निध” की कलम से

कर्ण, धरा का एक महान नायक,
युद्ध का परिणाम जानता, फिर भी खड़ा था वैभव का सायक।
सूर्य का पुत्र, पर पहचान में बंटा,
धर्म और अधर्म की सीमाओं में लटका।

कर्म की राह पर, उसने लिया अभिषेक,
शूरवीरों की पंक्ति में, अपने सत्य का लक्ष्य।
भीष्म के तीरों से, विदुर की बातें,
उसने सहा हर आघात, न छोड़ी अपनी मातृ-भक्ति की रातें।

दुर्योधन का मित्र, सच्ची मित्रता का प्रतीक,
उसकी निष्ठा में था एक अद्भुत संगीत।
जब धर्मराज ने कहा, “युद्ध की ज़रूरत नहीं,”
कर्ण ने कहा, “धर्म का पालन करूँगा, ये मेरी जिद नहीं।”

वह जानता था, उसकी हार निश्चित है,
पर कर्म की दिशा में, उसकी प्रेरणा अनिश्चित है।
कर्ण का दिल तो था एक सागर की गहराई,
उसकी आंखों में छिपा था, एक असाधारण मायावी साया।

कर्ण का वीरता में अद्वितीय योगदान,
युद्ध के मैदान में उसने लिखा अपना प्राण।
शक्तिशाली तीरों से किया दुश्मनों का सामना,
पर अंत में बंधा रहा, अपने कर्तव्य के जाल में समाना।

जब दुर्योधन ने कहा, “तू सबसे महान,”
कर्ण ने मुस्कुराते हुए कहा, “सच्चा मित्र वही, जो निभाए हर मान।”
युद्ध का परिणाम जानकर भी, नहीं मुड़ा पीछे,
उसकी आत्मा में थी एक अग्नि, जो जलती थी बिना किसी फीके।

युद्ध भूमि पर जब तीरों की बारिश हुई,
कर्ण ने अपने तीरों से अर्जुन की धार की सही।
पर अंत में उसे मिलना था अपने कर्म का फल,
उसकी वीरता की गूंज होगी सदा, चाहे हो कितना भी शांति का पल।

कर्ण, एक नाम जो अमर रहेगा,
युद्ध के मैदान में उसका हृदय, सच्चाई का सलेटा।
हर कष्ट में उसने अपने धर्म को निभाया,
कर्ण का संघर्ष, सदा हमारे हृदय में गूंजता रहेगा।

अनामिका “निधि”

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