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मंगल मूर्ति //जानेमाने लेखक व कवि अशोक पटसारिया की कलम से

 

विघ्न विनाशक को नमन, वंदन शत-शत बार।
वरद हस्त हम पर रखो, अबके करो सँभार।।
गणपति बप्पा आइए, रिद्धि सिद्धि के साथ।
करें आरती वंदना, रखें दास पर हाथ।।

गणपति के दरवार में, पड़े रहो दिन रात।
कब आ जाए शुभ घड़ी, कब बन जाए बात।।
नित्य आरती कीजिए, रखिए मंगल भोग।
वक्रतुंड मोदक चखें, ये अद्भुत संयोग।।

करें आरती का यजन, सुबह शाम सब भक्त।
श्री गणेश कर दें कृपा, हो जीवन अनुरक्त।।
दूर्वा दल चढ़ती जिन्हें, उनका नाम गणेश।
रिद्धि-सिद्धि दाता सदा, कहलाते प्रथमेश।।

दूर्वा दल प्यारी लगे, मोदक प्रिय गणनाथ।
सादर सेवा में खड़े, रखना सर पर हाथ।।
शिवा भवानी आपको, करती तुम पर नेह।
शुभ से मंगल कीजिए, मेट सकल संदेह।।

सकल विघ्नहर्ता तुम्हीं, तुम ही हो प्रथमेश।
वुधि विवेक के देवता, मङ्गल करो गणेश।।
दूर करो भगवान जी, कलुषित मन की पीर।
मङ्गल करो गणेश जी, हम हैं बहुत अधीर।।

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