नारी अबला क्यों कही गई? जीवन का जटिल प्रश्न // दुष्यंत द्विवेदी की कलम से
नारी अबला क्यों कही गई? जीवन का जटिल प्रश्न // दुष्यंत द्विवेदी की कलम से
क्या जब अबला थी जब नों माह शिशु को गर्भ में रखा,
या तब जब अपनी जान की परवाह न कर आपको,
शिशु के रूप में जन्म दिया और अपना दुख भूल गई,
या तब जब आपको सूखे बिछोने पर सुलाकर,
खुद गीले में पड़ी शिशु की आहट सुन चौकन्नी रही,
या जब अपने शिशु के संकट में ढाल बनती तब,
या जब सबको भोजन करा कर खुद भूखी सोती तब,
या जब पति की विपत्ति में सबसे आगे खड़ी होती तब,
या जब आपकी सुरक्षा में काली का रूप रखती तब,
या जब दुर्दांत दानवों को गाजर मूली की तरह काटती तब,
या तब जब देश पर हँसकर न्यौछावर हो जाती तब,
या जब फिरंगियों के गले काट कर फेंकती है तब,
या जब खेतों में हल चलाती सारा काम करती बिना थके,
या जब पुरुषों को पीछे छोड़ चंद्रयान पर जाती तब,
या जब देश का नाम रोशन कर स्वर्ण पदक लाती तब,
आखिर कब वो अबला हो गई आया नहीं मुझे समझ,
नारी न कभी अबला थी और न कभी अबला होगी भी,
अबला तो उसे बनाया पुरुष के अहंकार और स्वार्थ ने,
कैद कर दिया घर की चार दीवारी में अबला बनाकर,
सीमित कर दी जिंदगी चौका चूल्हे तक ले जाकर,
छीन ली उसकी आजादी पूरी तरह घर की शोभा बना,
आखिर नारी पर ही इतनी पाबंदियां क्यों लगी
पुरुष क्यों इतना स्वच्छंद हो बेलगाम हो गया।।