सच्ची सेवा और श्राद्ध का मर्म— पूनम शर्मा की कलम से
सच्ची सेवा और श्राद्ध का मर्म— पूनम शर्मा की कलम से
सच्ची सेवा और श्राद्ध का मर्म— पूनम शर्मा की कलम से
पूनम शर्मा, एक संवेदनशील और विचारशील लेखिका, अपने लेखन के माध्यम से समाज के मूल्यों और मान्यताओं पर गहरी दृष्टि डालती हैं। उनके विचारों में जीवन की सेवा और समर्पण का महत्व सर्वोपरि है। उन्होंने विशेष रूप से इस बात पर जोर दिया है कि माता-पिता की सच्ची सेवा उनकी जीते जी की जानी चाहिए, न कि केवल मृत्यु के बाद उनके श्राद्ध तक सीमित रहनी चाहिए।
उनका मानना है कि वही संतानें श्राद्ध के असली अधिकारी होती हैं, जिन्होंने अपने माता-पिता की जीते जी समर्पण और सम्मान के साथ सेवा की हो। उनके विचार इस पारंपरिक मान्यता को एक नई दिशा में ले जाते हैं, जहाँ श्राद्ध केवल एक धार्मिक कृत्य नहीं रह जाता, बल्कि यह जीवनभर की सेवा और प्रेम का प्रतीक बन जाता है। पूनम जी के लेख हमें यह सिखाते हैं कि अगर संतानें अपने माता-पिता की सच्ची देखभाल और सेवा करें, तो वही उनका सच्चा श्राद्ध होता है।
- उनका यह लेखन आज की पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा है, जो भौतिक सुख-सुविधाओं की दौड़ में अपने कर्तव्यों को भूलते जा रहे हैं।
पूनम शर्मा, एक संवेदनशील और विचारशील लेखिका, अपने लेखन के माध्यम से समाज के मूल्यों और मान्यताओं पर गहरी दृष्टि डालती हैं। उनके विचारों में जीवन की सेवा और समर्पण का महत्व सर्वोपरि है। उन्होंने विशेष रूप से इस बात पर जोर दिया है कि माता-पिता की सच्ची सेवा उनकी जीते जी की जानी चाहिए, न कि केवल मृत्यु के बाद उनके श्राद्ध तक सीमित रहनी चाहिए।
उनका मानना है कि वही संतानें श्राद्ध के असली अधिकारी होती हैं, जिन्होंने अपने माता-पिता की जीते जी समर्पण और सम्मान के साथ सेवा की हो। उनके विचार इस पारंपरिक मान्यता को एक नई दिशा में ले जाते हैं, जहाँ श्राद्ध केवल एक धार्मिक कृत्य नहीं रह जाता, बल्कि यह जीवनभर की सेवा और प्रेम का प्रतीक बन जाता है। पूनम जी के लेख हमें यह सिखाते हैं कि अगर संतानें अपने माता-पिता की सच्ची देखभाल और सेवा करें, तो वही उनका सच्चा श्राद्ध होता है।
उनका यह लेखन आज की पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा है, जो भौतिक सुख-सुविधाओं की दौड़ में अपने कर्तव्यों को भूलते जा रहे हैं।