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जीवन एक संघर्ष// जानीमानी लेखिका बबिता शर्मा की कलम से

जीवन एक संघर्ष// जानीमानी लेखिका बबिता शर्मा की कलम स

जागृति को प्रभात बेला से काम करते करते दोपहर १२बज चुके थे ।अचानक बच्चे के रोने की आवाज आते ही उसका ध्यान काम से हट जाता है और वह दौड़ कर बच्चे को उठा दूध पिलाने लग जाती है ।
तभी अचानक आवाज आई .….. मसाला खत्म हो गया क्यों इतनी देर लग रही है ।…..जागृति जोर से बोली लाती हूं साहब । उसने बच्चे को एक नज़र निहारा और मसाला ले मिस्त्री के पास पहुंच गई ।मिस्त्री ने घूरती आंखो से इसे देखा ….. कि खा ही जाएगा ।
कड़ी मेहनत के बाद दिन ढल गया और छुट्टी के पश्चात वह मजदूरी ले अपने घर पहुंच गई जहां उसका बीमार पति और दो बच्चे उसकी आने की राह तक रहे थे ।तभी सोनू जोर से चिल्लाया मम्मी आ गई और जाकर मां से लिपट गया । जागृति ने मुस्काई और बच्चो को प्यार कर पति की ओर बढ़ गई ….. पूछा कैसे हो ?
सत्यजीत ने कहा अच्छा हूं … तुम थक गई हो पहले थोड़ा आराम कर लो तब कुछ और करना मैने तुम्हारे लिए फ्लास्क में चाय बना कर रखी है पहले उसे पी लो । यह सुन जैसे उसकी सारी थकान ही मिट गई हो और अपलक पति को निहारती हुई आगे बढ़ अपने काम में लग गई ।
जागृति जानती थी की कष्ट का समय है यह भी एक दूसरे के साथ से पार हो ही जाएगा । दिन बीतते गए और प्रक्रिया इसी तरह चलती रही सालो गुजर गए पर जागृति ने अपना साहस नहीं खोया । हर दिन जब भी उठती नए जोश के साथ उठती ।पति की तबियत में भी सुधार हो चुका था और बड़ा बेटा ग्रेजुएशन कर चुका था । पलक झपकते और संघर्ष करते कब इतना समय बीत गया प्यार और जोश ने पता ही न चलने दिया ।
एक दिन शाम को जागृति जब काम से घर लौटी तो सोनू को घर में बैठा देख चौक गई …..वहीं पास सत्यजीत भी बैठा था सोनू ने मां को गोद में उठा लिया और खुशी से नाच उठा संग में दोनों छोटे भाई बहन भी झूमने लगे ।
…..…. तभी जागृति ने पूछा आखिर बात क्या है मुझे भी तो पता चले ….. सोनू ने मां की आंखे बंद की ओर मुंह मीठा करते हुए कहा …. मां तुम्हारा संघर्ष जीत गया .
….. मेरा सीबीआई में शेलेक्शन हो गया और 1.6.24 से ज्वाइनिंग है और ऑफिस की तरफ से दिल्ली में फ्लैट भी मिल गया है । यह सुन जागृति की आंखे खुशी से छलछला उठी और बोली बेटा ये तुम्हारी मेहनत का फल है ….सोनू ने मां के आंसू पोछे और कहा मां …ये तुम्हारे संघर्ष का परिणाम है । इतना सुन सत्यजीत ने सब को गले से लगा लिया और जागृति को अपलक निहारता रह गया । आज सत्यजीत के परिवार की खुशी का कोई ठिकाना न था।

बबिता शर्मा (गाजियाबाद)
लघु कहानी

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