शिक्षा की प्राथमिकता // सुप्रसिद्ध लेखिका बबिता शर्मा की कलम से
शिक्षा की प्राथमिकता // सुप्रसिद्ध लेखिका बबिता शर्मा की कलम से
वर्तमान परिवेश में शिक्षा का बढ़ता प्रसार स्वयं मानव के साथ साथ पर्यावरण,मृदा,जीव सभी के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहा है ।मानव ज्यों ज्यों प्रगति के शिखर को छू रहा है खतरा और भी भयाव्य रूप ले रहा है ।उच्च श्रेणी की शिक्षा प्राप्त कर मानव उसका उपयोग निज स्वार्थ और लाभ पूर्ति के लिए करने लगा है जिसका परिणाम भयाव्य वातावरण का निर्माण चरम सीमा पर है।भय रूपी विष पैर पसारकर विनाश को न्यौता दे रहा है।
इसका कारण है मानव में जागृत होता “निज लाभ”
जिसे पाने की जिज्ञासा में वह शिक्षा का उपयोग गलत क्षेत्रों में करने पर अवतरित हो गया है । वह चक्षु विहीन हो धर्म, संस्कृति,आचरण और अपने कर्तव्यों के प्रति मूढ़ हो गया है।अतः उसे आत्मिक ज्ञान की परम आवश्यकता है वह आत्मा से अपना अवलोकन करें और अपने अंतर्मन के विष को नष्ट कर अमृत की का सृजन करें अन्यथा भविष्य में उसके साथ संपूर्ण विनाश निश्चित है।
भविष्य के खतरे का पूर्वानुमान लगाते हुए शिक्षा की प्राथमिकता की परम आवश्यकता है जिसके लिए विभिन्न रूप से विज्ञापन और लेखन और साथ ही साक्षात्कार करना होगा ताकि भविष्य में होने वाले भयंकर विनाश से सबको बचाया जा सके।
मानव की यह नीति कि वह स्वयं को ईश्वर के स्थान पर प्रस्तुत कर अभिमानी हो रहा हैजिसके अंतर्गत वह अन्य को गौण समझ कर विनाश रूपी राक्षस की उत्पत्ति कर रहा है और भविष्य को ग्रास की ओर ले जा रहा है। इसका परिणाम उसे अकेले ही नही वरन सबको उसकी गलत नीतियों का हर्जाना भरना होगा ।अतः समय रहते जागृति की ओर चक्षु को खोलना परम आवश्यक है। इसके लिए सही तथ्यों एवम अपनी सनातन संस्कृति से अवगत करना होगा। दुष्परिणाम का चक्रव्यूह एक ऐसा अजगर है जिसके विष में एक बार स्नान किया तो स्वयं भी विषैले हो जाओगे ।
बबिता शर्मा