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पीहर की यादें //- सुप्रसिद्ध लेखिका व कवियित्री कमला उनियाल की कलम से

 

नम हो जाती हैं ऑंखें भी,पीहर की यादों में।
पंछी बन मन जा बसता है, बचपन के वादों में।।

मिट्टी के वह खेल खिलौने, बाबुल का घर द्वारा।
गाॅंव,गली,ऑंगन घर माॅं का, लगता कितना प्यारा।।

तितली के पंखों से सपने, निश्चल मन की बातें।
पनघट में वह हॅंसी ठिठोली,गीत गजल की रातें।।

माॅं,चाची,ताई भाभी की,सरल भाव सौगातें।
छप छप बारिश में खेलें हम,रिमझिम सी बरसातें।।

भाई बहिनों की वह टोली, प्यार और तकरारे।
भूल गये हम हॅंसना भी अब, सिमटे रिश्ते सारे।।

माॅं की साड़ी से गुड़िया को, दुल्हन बना घुमाते।
पीहर का हर घर अपना था, अपने रिश्ते नाते।।

ऑंचल माॅं का रहा सहारा, सुख-दुख बेपरवाही।
बिन माॅंगे सब कुछ मिल जाता,सुख की मातु दवाई।।

शाम हुई जब पिता लौटते, घर में रौनक छाई।
कभी खिलौना कभी मिठाई,मिलकर हमने खाई।।

खाली हाथ नहीं लौटे थे, मेहनत दिन भर करते।
माॅं ने संस्कार से सींचा, दुख पिता हमारे हरते।।

पीहर के घर अब खाली हैं, सूने गाॅंव खड़े हैं।
जंगल में तब्दील खेत सब, रस्ते वीरान पड़े हैं।।

सखी सहेली बरसों पहले, बिछड़ गई हम सारी।
तस्वीरों में देखी जाती, लगती बेहद प्यारी।।

सावन के झूले अब राहें, देख रही अपनों की।
छूट गये सब खेल खिलौने, दुनिया वह सपनों की।।

रहे सलामत पीहर सबके, खुशियाॅं हो हर द्वारे।
उन्नति के पथ रहो दोस्तों,सुखी रहे घर सारे।।

कमला उनियाल श्रीनगर गढ़वाल उत्तराखंड

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