गद्य (लघुकथा) दहलीज / बबिता शर्मा की कलम से

रमा छोटे से गांव में रहने वाली बहुत ही सभ्य ,शालीन एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व वाली लड़की थी ।बचपन में ही मां का साया सिर से उठ जाने और पिता का आकस्मिक निधन होने के कारण परिस्थितियों ने उसे 12साल की उम्र में ही 25साल का बना दिया था ।
गांव की पुरातन सोच के सामने बड़े बुजुर्गों के द्वारा बनाए नियमों को के होते दहलीज को पार कर भाई बहनों को संभालना इतना आसान न था लेकिन रमा ने उन सभी को अपनी समझदारी से हल कर अपनी हस्तकला को “जो उसकी मां ने उसे छोटेपन में ही सिखा दी थी” उसे केवल गांव तक ही सीमित न रख शहर तक पहुंचा ख्याति प्राप्त कर ली थी । वह क्रोशिए से पर्स बनाती और शहर की बड़ी दुकानों पर भेजती । पर्स का सौंदर्य देखते ही मन को मोह लेता …कोई भी तारीफ किया बिना नहीं रह पाता ।
अब रमा का बिज़नस बड़े शोरूम तक पहुंच ऊंचाइयों को छू रहा था । अब उसके लिए अपने घर खर्च के साथ भाई बहनों को पढ़ना कोई मुश्किल न था।
एक दिन अचानक एक कार रमा के दरवाजे पर आकर रुकी … कार का दरवाजा खुला और एक सुंदर और स्मार्ट युवक सामने खड़ा था । उसके हाथ में एक पेपर था …वह कुछ और नहीं रमा की नौकरी के लिए अपॉइंटमेंट लेटर था जिसकी बहुत अच्छी सैलरी और अन्य सुविधाएं भी थी । लेकिन रमा के लिए गांव की दहलीज को पार करना अभी आसान न था तो उसकी आंख छलछला है ।तभी गांव के सभी बड़े बुजुर्ग भी वहां आ चुके थे उन्होंने रमा की पीठ थपथपाई और शाबाशी देते हुए गले से लगा लिया । तभी जोरदार तालियों की गड़गड़ाहट से सारा गांव गूंज उठा और सभी ने रमा को गांव का नाम रोशन करने के लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं दीं।
अब रमा के लिए दहलीज पार करना कोई अभिशाप न हो बल्कि एक वरदान साबित हो गया था।
बबिता शर्मा
स्वरचित मौलिक लघुकथा