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२६ जनवरी गणतंत्र दिन/ जानेमाने लेखक व कवि नरेंद्र त्रिवेदी की कलम से

 

आज २६ जनवरी का दिन था। भारतका गणतंत्रदिनको उत्साह के साथ मनाया जा रहा था। मेजर दिपक भट्टसाहब अभी अभी भारतकी आन, बान, शानका प्रतिक तिरंगाको लहेरा के, तिरंगाको सेल्यूट देकर अपनी ऑफिसमें आकर बैठे थे। दूर कारगिलकी बर्फीली चोटियाँ दिख रही थी। चोटी पर भी तिरंगा लहेरहा था। मेजरसाहबको बरसो पुरानी एक घटना याद आ गई जिसने मेजरसाहबकी सोच और जिन्दगीका रुख बदल दिया था।
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रोमा रेस्टोरेंटकी खिड़कीसे कारगिलके बर्फीले पहाडोको दूरबीन से देख रही थी। फिर आकर उदासी भरे चेहरे मेजके पास कुर्शी पर बैठ गई। कॉफीका कप समाप्त हो गया था ओर कुछ सोचमे यूँही बैठी थी। दूर कुर्सी पर बैठे तीन दोस्त रोमाको देख रहे थे।उसमें से एक व्यक्ति दिपकने कहा, “युवती सुंदर है। मुझे युवती से प्यार हो गया है।”

दूसरे दिन रोमा रेस्टोरेन्टमें आई ओर दूरबीनसे कारगिलको देख रही थी। आज भी दिपकके साथ तीनो दोस्त रेस्टोरेन्टमें बैठे थे। एक दोस्तने कहा, “आप दूर क्यूँ कारगिलको देख रही हो, आपको तो कारगिलके बर्फीले पहाड़ों में घूमना चाहिए, अगर आप सच्चा मज़ा लेना चाहती हो तो।” रोमाने कुछ भी जवाब नहीं दिया। तीन दोस्तों में से एक ने कहा, “यह एक कठिन युवती लगती है।फिरभी हम जब तक जवाब नही मिलता कोशिश करते रहेंगे। रोमा ने इन शब्दोंको सुना लेकिन जवाब नहीं दिया।

“मैडम, आप रोज यहाँ से दूरबीनसे कारगिल की पहाड़ियोंको देखती हो उसमे कयां मज़ा आता है।

रोमाने तीनों पर तेज़ नज़र डाली, “फिर खिड़की की पास बुलाया ओर पूछा, “दूर क्या दिख रहा है?”

“कारगिलकी बर्फीली पहाड़ियाँ ओर कयां।”

“ध्यान से देखो, ऊंचे मस्तूल पर लहराता हुआ तिरंगा झंडा दिख रहा है? वह हमारा तिरंगा है। भारत की आन, बान और शान। मैं हर साल चार दिनों के लिए यहां आती हूं और आज का दिन मेरे लिए खास है। ऐसा इसलिए क्योंकि आज मेरा पति… जी हां.. आपने सही सुना मेरे पति युद्ध में लड़ते हुए शहीद हो गए थे इसलिए मैं पहले दो दिन उनकी याद में बिताती हूं। यह वह दिन है, जब मैं उनकी शहादत को सम्मान देने के लिए यहां आती हूं। कल मैं आखिरी बार कारगिल पहाड़ी छोड़ूंगी। एक शहीद की विधवा के रूप में मेरे पति ने अपने देश को ओर मुझे गौरवान्वित किया है। मेरे पास शहीदकी विधवा जैसा उच्च पद है, लेकिन यह आपकी समझ से परे है। आपकी समझ एक उपहास करने वाले जैसी है। क्या तुम उपहास के अलावा कुछ भी कर सकते हो? आज देशको आप जैसे युवाधन की देशकी हिफाजत के लिए जरूरत है। मगर लगता है आप कुछ नही कर पाओगे, सिवाय उपहास।”

रोमा की बात सुनकर तीनों दोस्त के होश उड़ गए। तीनो स्तब्ध हो गए रोमा कब चली गई पता ही नहीं चला.दिपक को रोमाकी बात दिलमे चुभ गई और सेनामें भर्ती होनेका फैसला कर लिया।

रोमा रेस्टोरेंट में आई। आज आखिरी दिन था. उसने देखा कि तीनों दोस्तों की टेबल खाली थी लेकिन उसकी टेबल पर फूलों का गुलदस्ता और उसके नीचे एक पेपर था, पेपरमे लिखा था, ”आपके जज्बे को शत-शत नमन, देश की खातिर शहीद हुए शहीद को हमारा हार्दिक सलाम, और हमें इसे स्वीकार करते हुए दुख है और फूलों का गुलदस्ता अर्पित करते हैं और हमें कुछ करने के लिए प्रेरित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।” दिपक ने लिखा था में यहाँसे सीधा सेनामें भर्ती होने के लिए चला जाऊंगा। ओर जब भी मुझे कारगिल आनेका मौका मिलेगा, आपको ओर देशकी खातिर शहिद हुये आपके पतिको शत शत नमन करूँगा।”

पुरानी याद से मेजर दिपकसाहब की आंखे आँसुसे भर आईं थी। दूर कारगिल की पहाड़ी पर भारत की शान, शहीदों के सम्मान का प्रतीक तिरंगा लहरा रहा था…

*नरेंद्र त्रिवेदी।(भावनगर-गुजरात)*

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