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लघु कहानी: “कुछ रिश्ते एसे भी होते है। // लेखक-  नरेंद्र त्रिवेदी की कलम से 

 

अजयभाई और रामनभाई दोनों दोस्त थे। वह उसी शहर में रहते थे और साथ ही अपने अपने पिताके व्यवसायको भी संभालते थे। दोनों दोस्त अक्सर फोन पर बात करते थे और अवसर मिलने पर मिलते थे।अजयभाई स्वभाव में शांत और सरल थे, रामनभाई अपने गर्व के लिए थोड़ा आत्म -आत्मसम्मान और अधिक आशावादी थे। अजयभाईको रामनभाईसे लंबे अरसे तक बात नहीं हुईं थीं इसलिए दोनों दोस्तने मिलनेका फैसला किया।

झुंझलाहटके अनुसार, दोनों दोस्त शामको बगीचेमें इकट्ठा हुए, दोनोंने बहुत बाते की। अजयभाईने कहा, “रामन आप कुछ चिंतित लग रहे हो”।

“नहीं चिंताकी कोई बात नहीं है।लेकिन घर में थोडासा तनाव है। आजके लड़के हमारी बात और सलाहको बेकार पाते हैं। जैसा कि हम कुछ भी नहीं जानते हैं।”

अजयभाई और रामनभाईको एक बेटा और बेटी थी। दोनोंके बेटी और बेटेकी शादियाँ हो चुकी थी। अजयभाई रामनभाईकी प्रकृतिसे परिचित थे, इसलिए अजयभाईने कहा।

“रामन, आप कुछ दिनों के लिए मेरे घरमें साथ रहनेके लिए आ जाओ। हमको साथ रहे लंबा समय हो गया है ओर यह मजेदार भी होगा”।

“हाँ आप सही हैं। मैं आपको तय करूंगा और बताऊंगा”

रामनभाईने अपनी पत्नीसे बात की, अजयने कुछ दिनों के लिए अपने घर में रहने के लिए कहा है अपने बेटे, बहू से भी बात की, सभी सहमत हुए।

रामनभाईने अजयभाईको फोन द्वारा सूचित किया।अजयभाईने अपने बेटे अनिल और बहु दीपा से बात की, घरका माहौल मजेदार हो गया।

रामनभाई, अजयभाई घर रहने के लिए गए, अजयभाईके बेटे और बहूने रामनभाई और उनकी पत्नीका अच्छी तरह से स्वागत किया।,

अजयभाईने कहा “रामन, आप मेरे साथ रहनेके लिए आ गए अच्छी बात है। हमें साथ रहनेका विशेषाधिकार मिला है।”

दीपाने पूछा, “चाचा, आपके लिए चाय कैसी बनाऊ, पिताजी, कम चीनी चाय पीते हैं, मधुमेह नहीं बल्कि सावधानी के लिए भी।

“देखो, रामन, दीपा मेरे बारे में कितना सोचती है।” “हाँ, बेटा, चाचाके लिए ऐसी चाय ही बनाना”

रामनभाई विचार में गिर गये।”रीता, (विजय, रामनभाईका बेटा)रामनभाईके बेटेकी पत्नी रीताने जब पूछा था तो मैने कहा था। “यदि मधुमेह नहीं है, तो उसकी चिंता क्यों करनी है, और अब से इस तरह की चिंता के साथ जीना भी व्यर्थ है”।

“रामन कहाँ खोया गया। दीपाने चाय ओर नाश्ता बनाया है, हम उसकी मेहनत को सही ठहराते हैं”।

दीपाने अजयभाई से पूछा, “मैं रात में रात के खाने में क्या करूँ?”

“बेटा, मुझे आपके हाथोंसे पकी सभी चीज पसन्द है।”

“नहीं, पिताजी आपको बैगनकी सब्ज़ी अच्छी लड़ती है। में बही बनाउंगी।चाचा, आप और चाची को पसन्द आएगी न? ”

“देखो, रामन दीपाको भी बैगनकी सब्जी अच्छी लगती है लेकिन मेरी बेटी मेरा नाम पर बनाएगी, मैं भी खुश ओर दीपा भी खुश।”

अजयभाई और गहरी विचार में गिर गए। ओर याद आया जब रीता ने पूछा तो मैंने सीधे जवाब नहीं दिया। और कहा था मुझे बताना और खाना बनता है आपकी पसंदका।”

अजयभाई ने देखाकी रामनभाई लगातार सोचमें पड जाते है। और सोचसे रामन कुछ समझ रहा है।

रामनभाई अपने तरीके से सकारात्मक मामले को मनमे उतार रहे थे और मनोमन संघर्ष कर रहे थे।

“अजय, हम पंद्रह दिनों से आए हैं और पता ही नही चलाकी समय कहां गुजर गया। अब हमें घर जाना चाहिए। विजय और रीता इंतजार कर रहे होंगे।

अजयभाईने रहने पर जोर दिया, लेकिन रामनभाईने विजयको कार के साथ बुलाया लीया था।

दोनों दोस्त रिहा हो गए, रामनभाईको लगा कि वह कुछ लेके जा रहा है, अजयभाईने महसूस किया कि रामनको कुछ दिया।

एक सारी के शोरूमके पास रामनभाईने विजयको कार रोकने को कहा।

रामनभाईकी पत्नीने रामनभाई से पूछा, “क्या काम है?”

“शोरूमके अंदर चले और रीता के लिए एक अच्छी महंगी साड़ी चुनें।”

“लेकिन रीता को पसंद आएगी?”

“हाँ, माँ, पिता जो बच्चों को उपहार देते हैं वो उन्हें जरूर पसन्द आते है।”

रीता के लिए एक अच्छी महंगी साड़ी चुनी और विजयके लिए एक सूटका कपड़ा लिया, रामनभाईकी पत्नी भी खुश थी।

एक बंगाली मिठाई की दुकान से रीताके लिए बंगाली मिठाई और विजयके लिए मिठाई ली।

घर पहुंचे, विजय और रीता दोनों प्रतीक्षा कर रहे थे। अनिलभाईका ओर घरके सदस्योका खबर अंतर पूछा।

“पिताजी, चाय या ठंड बनाऊ”।

“रीता बेटा तू ओर विजय पहले मेरे पास बैठो।”

रीताने रामनभाईकी पत्नी (सास) की ओर देखा, उसेने अपनी आँखों से हाँ दिखाई।

“ले, हमने रीताके लिए एक साड़ी खरीदी है, और विजय तेरे लिए सूट कपड़ा खरीदा है, हमारी ओर से उपहार।”

रीता विजयने एक -दूसरे को देखा, हक्कर की सहमति के साथ उपहार लिया और खोला, दोनों के चेहरे ख़ुशीसे चमक उठे और माँ और पिताके पैर छुए। रामनभाई और उनकी पत्नी खुश थे घर में खुशियाँ छा गई।

विजय और रीताने कहा “माँ, पिताजी बहुत बहुत धन्यवाद, हम दोनोंको आपका उपहार पसंद है।”

रामनभाई भी मनोमन खुश थे कि पहली बार बच्चोंको उपहार दिया और उसे पसंद आया।

रामनभाईने सब कुछ बदल दिया और खुद को बदल दिया और घरका माहौल बदल गया।

एक शाम रामनभाई अपनी पत्नी, विजय और रीता दीवान में बाते कर रहे थे।

विजयने पूछा,”पिताजी आपके परिवर्तनका रहस्य क्या है”।

“कुछ भी नहीं बेटा, मेरा मानना ​​था कि परिवर्तन नई पीढ़ी में होना चाहिए, पुरानी पीढ़ी के पास अनुभव, समझ और स्थिरता है, लेकिन मैं अपनी धारणा में गलत था। मैं अनिलके घर समझा की में मेरी सोच गलतथी कि नई पीढ़ीको पुरानी पीढ़ीके साथ बदलना चाहिए। लेकिन ऐसा नही है दो पीढ़ीके बीच समयानुसार समजोता ओर बदलाऊ होना चाहिए।

“हाँ! पिताजी आपकी बात सही हैं। नई पीढ़ी को भी पुरानी पीढ़ीके अभ्यास, विचारों, सम्मान, स्वमानको स्वीकार करना और उनका पालन करना चाहिए। इससे दो पीढ़ियोंके बीच पीढ़ीका अंतर कम हो जायेगा और घरमे खुशियों भरा माहौल हो जाएगा।”

“अनिल आने के लिए कह रहा था, कोल करें।”

“कोल मत करना मैं परिवारके साथ आपके बदलाव और परिवारके साथ रहने के लिए सामने आया हूं।” लिविंगरूम हँसी से गूँज उठा।

परिवर्तन प्रकृतिका नियम है और हमें प्रकृति से स्वीकार करना और सीखना होगा कि हर परिस्थिति परिवर्तनशील है।

नरेंद्र त्रिवेदी।(भावनगर-गुजरात)

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