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आलेख—-संस्कार — मैत्रयी त्रिपाठी

 

“संस्कार “ शब्द का अर्थ हर एक वाक्य में बदल जाता है, सब अपने हिसाब से उपयोग करते है।
जैसे.अगर कोई किसी को जवाब दे दे ..
संस्कार नाम की चीज़ ही नही है।
अगर किसी के कपड़े पसंद ना आए….
संस्कार तो रह ही नहीं गया है।
कोई बच्चा पढ़ने में अच्छा है तो लोग कहेंगे…..
पढ़ाई से ज्यादा संस्कार जरूरी है ।
और अगर संस्कारी हो तो कहेंगे…
पढ़ाई ज़रूरी है संस्कार नही।
और हम औरतों का तो पूछिए मत…
हमारे लिए तो ससुराल रूपी परिक्षा गृह में
संस्कार रूपी तरह तरह के प्रश्न उठाए जाते है।
और हम इसका जवाब भी संस्कार से देती है।
क्या आपने सोचा है एक संस्कार अपने अंदर कितने मायने समाहित कर बैठा है।
इतनी जल्दी तो नेता लोग भी दल नही बदलते जितनी जल्दी ये अपना अर्थ बदल लेता है।
मेरे लिए तो गंगा मां जैसा है ये संस्कार शब्द , धुनता पिटता, अहम को पालने में , जलन की भावना में,आरोप लगाने में प्रयुक्त होता हुआ भी ,कितना खूबसूरत कितना निर्मल है यह…शायद ” ईश्वर”शब्द के बाद इसी का स्थान है। क्योंकि संस्कार ही है जो हम इंसानों को परोक्ष रूप से जोड़े रखता है।

मैत्रेयी त्रिपाठी

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