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आत्म सम्मान लघुकथा // लेखिका स्वर्णलता सोन

 

“अरी चोरटी ये किताब कहाँ से ली?”,लीना ने गुड़िया के हाथ से किताब छीनते हुए कहा।।
“नहीं दीदी मैंने चुराई नहीं है, बड़ी अम्मा जी रद्दी में बेच रहीं थीं मैंने मांग ली।।”
‘तू पढ़ के क्या करेगी,अपनी माँ की तरह बर्तन ही तो मांजेगी ना।”लीना नें अहंकार से कहा।।और गुड़िया की आँखों में आँसू आ गए।
गुड़िया बहुत गरीब परन्तु स्वाभिमानी लड़की थी,उसे #आत्मसम्मान को बहुत ठेस लगी, वो कुछ नहीं बोल सकी, पर उसी दिन उसने मन में ठान लिया कि वो ज़रूर पढ़ेगी और कुछ बन कर दिखाएगी।उसकी आकांक्षाएं आकाश की छूने की थीं,पर घर की हालात कुछ और ही थे।
वो बाहर बैठ कर रो रही थी कि नीरजा की नज़र उस पर पड़ी। ‘क्या हुआ बेटा क्यो रो रही हो?”उन्होंने पूछा,तो उसने साथ के घर में रहने वाली टीचर जी को सारी बात बताई,सुन कर उन्होंने कहा कि मैं पढ़ाऊंगी तुझे।
गुड़िया दिन में माँ के घरों में काम करवाती तो लीना उसे कभी तानें मारती कभी मुँह चिढ़ाती और कहती ये तो पढ़ लिख कर प्रधान मंत्री बनेगी।
गुड़िया शाम को टीचर जी से जा कर पढ़ती,जल्द ही वो बहुत कुछ सीख गई।नीरजा मैडम नें उसका सरकारी स्कूल में दिखला भी करवा दिया,उसकी फीस भी सरकारी योजना के अंतर्गत माफ हो गयी और किताबें भी मुफ्त मिल गयी।
आखिर परीक्षा का दिन पास आ गया, लीना तो बड़े स्कूल में पढ़ती थी,पर सारा दिन टीवी और मोबाइल में लगी रहती थी, समझती थी कि वो अमीर है और बिना पढ़े भी पास हो जाएगी।परन्तु जब नतीजा निकला तो लीना फेल हो गयी और गुड़िया का परिश्रम रंग लाया,वह प्रथम श्रेणी में पास हो गयी। सच में यदि मन में ठान लिया जाए तो कोई भी आकाश को छू सकता है।। उसका आत्मसम्मान सच में उसे आकाश की ऊंचाइयों पर ले गया।।

स्वर्णलता सोन

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