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आत्मविश्वास // लेखक पालजीभाई राठौड़

 

अजय और अमृता को एक संतान था उसका नाम अंकित था।अंकित जन्म से ही दोनों पांव अपंग था। माता पिता ने हिम्मत नहीं हारी। अच्छी तरह उसकी परवरिश की। जब अंकित थोड़ा बड़ा हुआ तो शहर के एक नामांकित ऑर्थोपेडिक डॉक्टर को बताया गया।अंकित के पांव का एक्सरे लीया गया। जांच की और डॉक्टर ने आश्वासन देते हुए कहा; ‘अंकित अच्छा हो जाएगा और दोनों पांव चल पाएगा’। अंकित का ऑपरेशन भी हो गया लेकिन अंकित जन्म से ही व्हीलचेर पर था।उसको आत्मविश्वास न था कि मैं चल पाऊंगा खड़े होने में भी घबराहट का अनुभव करता था।उसने दादा दादी और माता पिता आश्वासन देता था और कहता;’बेटा अंकित, तुम चलने की कोशिश करो डर मन में से निकाल दो चलने में सफलता मिलेगी’। अंकित में आत्मविश्वास जगाने की कोशिश की।जो बेटा कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।आत्मविश्वास रखकर अड़ग मन से कोशिश किया करो। प्रयास से ही सफलता मिलती है। जीवन में आए मुश्किलों को घबराना नहीं उसका डटकर सामना करना चाहिए।जिंदगी एक संगीत हैं उस गीत को गुनगुनाते रहो, चाहे कोई भी परिस्थिति हो हमेशा मुस्कुराते रहो‌।अंकित में थोड़ा आत्मविश्वास आया उसने चलने की कोशिश की और चलने में सफलता मिली।
हमारी सफलता एक वाहन हैं जो कर्म रुपी पहियों पर चलती है
परन्तु आत्मविश्वास रूपी ईंधन के बिना
हमारी ये यात्रा असंभव है।
‘प्रेम’ हजारों उलझने राहों में और कोशिशें बेहिसाब,
इसी का नाम है ज़िंदगी चलते रहिये जनाब।

पालजीभाई राठोड़ ‘प्रेम’ सुरेंद्रनगर गुजरात

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