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अभिव्यक्ति की आज़ादी या नैतिकता का पतन // मीनाक्षी सुकुमारन

 

भारत ऐसा देश है जहां हर धर्म, भाषा, व्यक्तित्व, रहन सहन के लोग रहते हैं और भारत के संविधान के अनुरूप हम सबको आज़ादी है अपनी बात कहने की, विचारों को सांझा करने की।पर ये आज़ादी चाहे निजी जीवन में हो, सामाजिक, पत्र पत्रिकाओं, मीडिया , यू ट्यूब,
या किसी भी प्रचलित प्लेटफार्म पर मर्यादाओं , अपशब्द ,असहज या अपमान जनक भाषा प्रयोग का उत्तरदायित्व किसी को नहीं देती।
हर व्यक्ति को भले ही स्वतंत्रता है अपनी बात कहने की, विचारों का सांझा करने की पर अच्छी ,सहज ,आदर सहित जिससे किसी को भी ठेस न पहुंचे या बुरा महसूस हो। क्योंकि घर में हर उम्र के लोग रहते हैं बुजुर्ग, बड़े, युवा, छोटे, बच्चे तो देखने, सुनने वाले पर कही बात का क्या प्रभाव होगा ये अवश्य सुनिश्चित करें। अपशब्द, अभद्र भाषा, बोलों को तेज़ी से सुर्खियों में आने का माध्यम न बनाएं जो भी कहें या प्रस्तुत करें उसे नाप तोल कर अपनी मर्यादा में रहते हुए ही करें। जिससे न समाज पर बुरा प्रभाव पड़े न ही किसी व्यक्ति विशेष या समुदाय पर। समझदार बनिए, ज़िम्मेदार बनिये और भाषा व शब्दों पर ध्यान दें। अभिव्यक्ति की आज़ादी नैतिकता या नैतिक मूल्यों का पतन नहीं होनी चाहिए।
मीनाक्षी सुकुमारन
नोएडा

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