अरमान // अलका गर्ग

पहली बेटी के पैदा होने के बाद तो सब कुछ सामान्य ही था ।नई पीढ़ी का पहला बच्चा होने के कारण सभी लाड़प्यार करते थे।पर पाँच साल बाद दूसरी बेटी का आगमन शायद किसी को भी नही अच्छा लगा। दादी दादा का तो मन सकते हैं कि उन्हें अपना वंशवाहक नही मिला इसलिए कुपित थे पर बुआ चाचा …उनको क्या फ़र्क़ पड़ा यह अंजू जान नही पाई।
फिर तो उसका ओहदा एक पढ़ी लिखी सुशील समझदार सर्वगुण सम्पन्न बहु से एकदम धड़ाम से नीचे आ गिरा।उसकी ही माँ को उसके जैसी बहु मिलने का आशीर्वाद देने वाली सासूमाँ को अचानक अंजू के अंदर केवल बुराइयाँ ही नज़र आने लगीं।अपनी माँ पर जाती तो पहली बेटी के बाद बेटा होता पता नही किस पर गई है??
पहली बार मालूम पड़ा कि किसी बड़ी बीमारी की तरह बच्चा होना भी वंशानुगत होता है।
ख़ैर राकेश बहुत ही सुलझे हुए समझदार इंसान थे।उन्होंने रोज़रोज़ की खींचतान और तानाकशी से उसे बचाने के लिए दूसरे शहर में नौकरी ढूँढ ली।बहुत ही दुःखी मन से अंजू और राकेश को अपनी बहुत कम तनख़्वाह ,अल्प सामान और छोटी छोटी दो बच्चियों के साथ घर छोड़ना पड़ा।दोनों ने मन को यही सोच कर तसल्ली दी कि जब अच्छा वक्त नहीं टिका तो बुरा वक्त भी नहीं टिकेगा यह वक्त भी गुज़र ही जायेगा…!!
अब उनका एक ही अरमान था कि चाहे कितनी भी मेहनत करनी पड़े पर हम अपनी दोनों बच्चियों को इस क़ाबिल बनाएँगे कि घरवालों को अतीत में किए गए अपने व्यवहार पर अफ़सोस हो।
दोनों बेटियाँ पढ़ाई लिखाई के साथसाथ अन्य क्षेत्रों में भी काफ़ी तेज़ निकली।उन दोनों ने उनका उज्ज्वल भविष्य बनाने के लिए जो अरमान दिल में पाला था,ईश्वर के आशीर्वाद से वो पूरा हुआ।बड़ी बेटी को पढ़ाई पूरी करते ही एक बड़ी विदेशी कम्पनी ने नौकरी पर रख लिया और जल्दी ही बहुत अच्छे परिवार ने अपने विदेश कार्यरत लड़के के लिए बिना दहेज़ उसे माँग लिया।
छोटी बेटी यूनिवर्सिटी टोपर,
स्कालरशिप होल्डर,गोल्ड मेडलिस्ट रही।जिसके जन्म पर पूरे परिवार ने बग़ावत कर दी थी।बहुत बड़ी कम्पनी ने उसे ले लिया।तब उससे कभी प्यार से ना बोलने वाली उन्ही दादी ने कहा..जानती थी कि कुछ बड़ा काम करेगी ..पोती किसकी है..
ख़ैर दिल के अरमानों को पूरा करने में बहुत मेहनत,तपस्या,लगन,
सही निर्णय और सबसे ज़्यादा ऊपरवाले का साथ ज़रूरी है।
अलका गर्ग,गुरुग्राम