बंधन // लेखिका सपना बबेले

दोस्तों मनुष्य का जन्म ही बंधन से ही प्रारंभ हुआ है।
मां की कोख में नौ माह का बंधन,कितना कष्ट और परेशानी वाला होता होगा।ये तो अच्छा है कि किसी को कुछ भी याद नहीं रहता वरना मनुष्य ईश्वर की भक्ति और सत्कर्म करते हुए अपने पापो का शमन जरुर करता।जो कि ईश्वर से गर्भ में विनती करता है कि हे भगवान मुझे इस नर्क से बाहर निकालो,मैं आपकी भक्ति करूंगा।
, जन्म हुआ,तो पूरी तरह से मां के ऊपर निर्भर रहता है।
अब शुरू होता है माया का बंधन, पिता और माता के देखरेख में पालन पोषण हुआ।
अपने से बड़ों के प्रति स्नेह का बंधन। बहन की रक्षा करने का रक्षा बंधन जैसे पवित्र बंधन।
एक भाई होने के नाते बहनों को सुखी और सुरक्षित रखने का बंधन।
वयस्क होने पर विवाह हुआ। गठजोड़ भी एक तरह का बंधन ही है।दो अनजाने अलग होने पर भी जीवन भर साथ निभाने का बंधन। यही प्रेम का बंधन है।
कुछ दिनों बाद माता और पिता बने तो संतान की परवरिश का बंधन।
कुछ दिनों बाद जब बच्चे बड़े हुए तो उनका भी विवाह करने का बंधन।
परिवार के बड़े होने के नाते हर रिश्ते को निभाने का बंधन।
अपने ऊपर निर्भर लोगों को सुखी रखने का भी एक बंधन है ।
जीवन पूरा होने पर, जब व्यक्ति संसार सागर से जाता है तो उसकी देह को भी रस्सी से कस कर बांधना भी एक बंधन ही तो है।
और कुछ कर्म भुगतने रह जाते हैं तो पुनः जन्म लेने का बंधन।
जन्म से मृत्यु तक का सफर सिर्फ बंधन ही बन्धन है।
माया के चक्कर में भूल बैठे भगवान को।
कर्मों के बंधन इतने प्रबल होते हैं कि सही ग़लत मे भेद ही नहीं कर पाते हैं।
आया है सो जाएंगे, राजा रंक फकीर।
एक सिंहासन चढ़ चले,एक बंधा जंजीर।।
इंसान कभी स्वतंत्र नहीं रहता जब तक ये सांसें हैं।
माया के बंधन में बुरी तरह जकड़ा हुआ है। ईश्वर की भक्ति ही एक ऐसा सरल साधन है जिससे कि जन्म मृत्यु के बंधन से छुटकारा पाया जा सकता है।
सपना बबेले स्वरा झांसी उत्तर प्रदेश