बदलाव // लेखिका संगीता झा

अविनाश के ऑफिस से आते ही अवनी ने मुस्कुराते हुए दरवाज़ा खोला और बोली चाय बना दूं, नाश्ते में क्या लेंगे कहते हुए झट से अविनाश के कंधे से ऑफिस बैग उतार रख रखते हुए किचन में चली गई।
अविनाश सौफे पे बैठ कर सुस्ताते हुए बोला आखिर अवनी को तेज तर्रार बना ही दिया मैंने, कितनी सुस्त आलसी सी थी जब ब्याह के लाया था। इतने में अवनी ब्रेड पकौड़े और चाय ले कर आ गई, अविनाश ने चाय का आनंद लिया ।चाय खत्म ही हुई थी कि अवनी पूछ पड़ी खाने में क्या खायेंगे आप? दोनो बच्चों का होम वर्क हो गया अविनाश पूछा, अवनी बोली जी और आपके कपड़े भी धो के प्रेस कर दिए कल की मीटिंग के लिए।
घर एकदम चमक रहा था, साफ सुथरा उसपे रूम फ्रेशनर की भीनी सी महक, अविनाश सुकून की सांस ले रहा था कि जैसा *बदलाव वह अवनी में चाहता था, वह वैसी ही बदल चुकी थी। इतने में उसका छोटा बेटा मनन पापा पापा करते हुए लिपटते हुए कहने लगा पापा मुझे नया रोबोट टॉय चाहिए। तभी उसकी नज़र उसके कपड़ों पर पड़ी वह झल्लाया अवनी तुम नहीं सुधर सकती तुम वैसी ही आलसी की आलसी ही रहोगी देखो मनन के कपड़े कितने गंदे हैं । करती क्या हो दिन भर?
अवनी सहमी सी माफ़ी माँगती हुई रसोई में वापिस चली गई। सब खाने की टेबल पर बैठे अवनी ने सब कुछ अविनाश और बच्चों की पसंद का खाना बनाया था। वह टेबल के इर्द गिर्द दौड़ दौड़ कर सब को परोस रही थी , और फिर खड़ी हो गई और फिर बोली और कुछ लेंगे आप? खाना ठीक लगा ? अविनाश ने कहा नहीं, इतने में अवनी का हाथ उसके हाथ को लगा तो उसे महसूस हुआ उसका हाथ बिलकुल ठंडा पड़ा था, वो एक दम सीधी एक रोबोट की तरह अगले आदेश के इंतज़ार में खड़ी थी।
अविनाश एक दम से सोच में पड़ गया क्या ऐसा *बदलाव वह अवनी में चाहता था, जहाँ वह अपने अंदर की खुशी, अपनी हँसी , अपने आप को भूल एक चलती फिरती रोबोट बन गई थी। अब उसे एहसास हुआ जिस अवनी को वह लाया था वह उसके लिए बदल तो गई थी, पर अब वह अवनी रही ही नहीं।
संगीता झा “संगीत” (नई दिल्ली)