Uncategorized
भारत की नारी // लेखक अशोक पटसारिया की कलम से

नारी खुद शृंगार कर, खींचे अपनी ओर।
मन भावन सुंदर लगे, ये काजल की कोर।।
नारी से संसार में, चलता हर व्यवहार।
नारी क़रती है सदा, रिश्तों का श्रृंगार।।
काजल बिंदी आलता, चूड़ी कंगन हार।
पायल मंगल सूत्र है, नारी का शृंगार।।
विजय हुई थी सत्य की, यही मिला संदेश।
नारी को छलना बुरा, समझ गया लंकेश।।
नारी पर लुट जाइए, मन की मिले न थाह।
जितना रहिए पास में, बढ़ती उतनी चाह।।
जिस घर में नारी नहीं, जान उसे बेकार।
नारी से घर में रहे, शोभा अमित अपार।।
जीवन का है स्वर्ण युग, नारी यौवन काल।
नयन नशीले रस भरे, सुर्ख लाल हैं गाल।।
अशोक पटसारिया ‘नादान’