Uncategorized

बसन्त पंचमी // लेखक नरेश उनियाल

 

फाल्गुन…. बसन्त के प्रारम्भ का मास..
बसन्त पंचमी जैसा पावन और महत्वपूर्ण पर्व इसी माह में पड़ता है।
बसन्त पंचमी को वीणावादिनी माँ सरस्वती के अवतरण दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। आज के दिन देवी सरस्वती की पूर्ण विधि विधान से अर्चना पूजा की जाती है। किन्तु बसंत पंचमी का यह दिन सिर्फ इसीलिए ही नहीं, अपितु कई मायनो में भी बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। आज के दिन भगवान विष्णु और कामदेव की भी पूजा की जाती है।
कहते हैं कि कामदेव और उनकी पत्नी रति आज के दिन धरा पर आते हैं और इस धरणी पर प्रकृति में प्रेमरस का संचार करते हैं, इसलिए बसंत पंचमी से मौसम बहुत ही सुहावना और आनन्ददायक हो जाता है। चारों ओर उल्लासपूर्ण और आनन्ददायक वातावरण छा जाता है। इसलिए बसन्त को ऋतुराज भी कहते हैं।
कालिदास जी कहते हैं कि…
“द्रुमा सपुष्पा सलिलं सपद्मम,
स्त्रियः सकामा: पवनः सुगन्धि:,
सुखा प्रदोषा: दिवसाश्च रम्या:,
सर्वे सखा चारुतरं बसन्ते।
अर्थात पेड़ पुष्प युक्त हो जाते हैं, तालाबों में कमल खिल जाते हैं, हवा सुगन्धित हो जाती है और मानव कामयुक्त हो जाता है, रात्रि सुखकर और दिन सुरम्य हो जाते हैं। बसंत ऋतु में सब कुछ मनोहारी हो जाता है।
ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की, किन्तु जब उन्होने देखा कि धरणी पर चारों ओर ख़ामोशी का साम्राज्य व्याप्त है तो उन्होंने अन्य देवी देवताओं से विचार विनिमय के उपरांत देवी सरस्वती की उत्पत्ति की, उन्हें पृथ्वी पर भेजा और यहाँ आकर सरस्वती जी ने वीणा वादन करके पृथ्वी को झंकृत कर दिया। फिर समस्त प्राणियों को आवाज की सम्प्राप्ति हुई और संसार में मधुर आवाजें गुँजित होने लगी।
इस प्रकार आज के दिन को सरस्वती अवतरण दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
इस वर्ष बसंत पंचमी रविवार 2 फरवरी को पड़ रही है, तो आनंदित, प्रफुल्लित और उत्साहित होकर बसंत पंचमी मनाएं, खुश होवें और खुशी बांटें।
नरेश चन्द्र उनियाल,
पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!