बुद्धि का चमत्कार // सुनीता तिवारी

अचानक मुनिया की नींद खुली।
ची ची की आवाज उसके कानों में पड़ रही थी।
पास में माँ सो रही थीं उसने धीरे से खिड़की खोली।
सामने कार्यालय गिरा था।
मलवे के बीच से पानी बह रहा था
इमारत ने कई पेड़ों को अपनी चपेट में ले लिया।
खिड़की में नजर डालते ही एक मादा चिड़िया आकर खिड़की पर बैठी हुई दिखी।
वह अपने पंखों से नन्हें चूजे छिपाए हुए है तभी तक चिड़ा एक और चूजा मुँह में दबाकर ले आया और चिड़िया के पंखों में छोड़ दिया,
कहाँ गए बड़े विशाल पेड़।
जहां से दिन भर परिंदों की आवाज आती थी।
मुनिया ने एक बड़ा पुट्ठे का डिब्बा ले जाकर कुछ
पुराने कपड़े उसमें डाल दिये।
थोड़े से गेंहू चावल के दाने और एक कटोरी में पानी रखा।
जब तक वह कंबल लेने आयी चिड़िया औऱ चिड़ा अपने बच्चे डिब्बे में ले जा चुके थे।
मुनिया ने धीरे से गर्मी रखने के लिए डिब्बे के ऊपर कम्बल डाल दिया था।
बालकनी का पर्दा बंद किया जिससे सभी सुरक्षित रहें।
आकर निश्चिंत होकर सो गई।
सुबह माँ का स्पर्श पाकर उठी।
माँ अब मैं अकेली नहीं हूँ।
मेरे संग एक पक्षी परिवार भी रहेगा।
मुनिया अपने पापा की दो माह पहले हुई मृत्यु से बहुत दुखी रहती थी।
माँ बाहर गयी उन्होंने देखा कि डिब्बे में चिड़ियां अपने पंखों में चार नन्हें छिपाकर बैठी हुई है।
उसे लगा कि
इस पक्षी परिवार से सबक लेना चाहिए।
कैसे अपने नन्हों को मुँह में दबाकर लाये?
अब मुनिया भी आ चुकी थी माँ ने हर्ष से गले लगाते हुए कहा कि बता तुझे क्या उपहार चाहिए।
आज तूने इन पंछियों को बचाकर नेक काम किया।
माँ मुझे कुछ नहीं चाहिए जब तक ये बच्चे उड़ने लायक न हो जाये यहीं रहने देना माँ।
माँ सोच रही थीं कि मेरी बेटी बहुत होनहार निकलेगी।
आज उसका बुद्धि का चमत्कार देख कर माँ हतप्रभ थीं।
सुनीता तिवारी