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दिखावे की दुनिया // लेखिका मंजू शर्मा

 

दिखावे की दुनिया का बस एक ही उसूल है सही ग़लत के फर्क को हटा बस अंधी चकाचौंध में खो जाओ। एक कहावत है ना – जो दिखता है वही बिकता है, इसी की तर्ज़ पर लोग बस दिखावे में ही लगे हैं चाहे फिर व्यापार हो नौकरी हो या फिर निजी ज़िंदगी।दिखावा लोगों की मानसिकता को दर्शाता है। पॉकेट में सौ रूपए हों लेकिन शौक हम हजार रुपए के रखते हैं।इसी सोच से दुनिया में न जाने कितने लोग मरते हैं। आराम हमें कॉटन के कपड़ों में मिलता है लेकिन फैशन में सिल्क है तो वही हमें पहनना है। इसी तरह आराम डॉक्टरी स्लीपर में है लेकिन पार्टी में तो हील‌ पहननी है चाहे पैरों में दर्द ही क्यों न हो जाए?आज के दिखावे की दुनिया में हर इंसान मुखौटा लगाए फिरता है। हमें अपने आपको जैसे हैं वैसे दिखाने में दिक्कतें कहाँ आ रही हैं ? इस बात से अनजान है हम या फिर समझना ही नहीं चाहते ? एक बीमारी की तरह ग्रसित है दिखावे की दुनिया में लोग।उसके पास ये है तो मेरे पास भी होना चाहिए।अगर हम इसी भेड़चाल में चलते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब लोग सिर्फ बीमार ही नजर आयेंगे। क्योंकि स्टेटस को मेंटेन रखने के लिए जो टेंशन हम पाल रहे हैं वो बीमारी का घर है। अरे भगवान ने हमें कुछ सोच कर ही बनाया होगा। अगर अब हम दूसरों की नकल या दूसरों जैसा बनने की कोशिश करेंगे तो हम अपना ही अस्तित्व खो देंगे।
लोग अनेक तरह का दिखावा करते हैं। ब्रांड के नाम पर दिखावा, शेखी झाड़कर ज्ञान का दिखावा,ब्रांडेड कपड़े,जूते ,चश्में और डियो लगाकर खुद को नवाब समझना और बिना बात की अकड़ में रहना,बिना बात का अंहकार दिखाना, किसी को नीचा दिखाना ज्ञानी की नही बल्कि अज्ञानी की पहचान हैं।ये सब दिखावे की श्रेणी में ही आते हैं। हद तो तब हो गई,जब लोग रिश्तों को भी महज़ सहानुभूति के नाम पर दिखावा करने लगे हैं।अंतरात्मा मर ही गई है लोगों की…अपने असली स्वरूप से हम जितना दूर होते जाएंगे उतनी ही अशान्ति और असन्तोष हमारे अन्दर घर कर जाएगा और उसी नकारात्मकता में हम रहने लग जायेंगे। हमारे जीवन की गुणवत्ता खराब होती चली जाएगी। दिखावे के चक्कर में न जाने कितने ही झूठ पालने पड़ जाएं पर दिखावटी दुनिया में अपने मौलिक स्वरूप को न खोएं।नींद से जागें, पहचानें अपने आप को…किसी भी तरह का घमंड आपको बाहरी साज-सज्जा तो दे सकता हैं,आंतरिक नहीं। समझने वाली बात ये है कि हम दिखावे में जीते ही क्यों हैं? क्यों हर रोज एक मुखौटा लगाए रहते हैं?हम अपने आपको जैसे हैं वैसा ही क्यों नहीं दिखाते?
आखिर समस्या कहाँ है?
ये सब बड़े सवाल है प्रकाश जरूर डालें। नहीं तो वो दिन दूर नहीं आप खुद को भी पहचानने में असमर्थ हो जाएंगे।
सकारात्मकता और ईश्वर को अपने परम मित्र बनाइए,दिखावे की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।

मंजू शर्मा

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