डर एक कल्पना // माया सैनी

मनुष्य मन की दो वो स्थितियाँ होती हैं सकारात्मक और नकारात्मक । ईश्वर की कल्पना सकारात्मक है तो उसके अस्तित्व के विपरीत स्थिति नकारात्मक कहलाती है, जिससे प्रभावित व्यक्ति मन – मस्तिष्क से हारा और निराशा की स्थिति में आ जाता है । डर हारी हुई मन स्थिति से उपजी वह अवस्था है जो मस्तिष्क पर असर करते हुए शरीर को शिथिल कर देती है । परिणामस्वरूप कंपन , अनर्गल वार्तालाप, आदि प्रतिक्रियाएं आरंभ हो जाती हैं । आस -पास के वातावरण पर और अन्य लोगों पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ता है । धीरे- धीरे समयानुसार यह अवस्था समाज के व्यक्तियों पर हावी होकर स्वयं को प्रतिस्थापित कर लेती है और इसे कहते हैं डर या भय ।
डर मानसिक स्थिति है , काल्पनिक अवस्था है और यह ईश्वर की सत्ता से भी ऊपर अपनी स्थिति बना लेती है । वास्तव में ईश्वर और उसका अस्तित्व भी एक मानसिक सकारात्मकता का परिणाम है । दुनिया में आने तक मानव सुरक्षित एवं प्रसन्न था लेकिन जन्म लेते ही उसका ज़ोर – ज़ोर से रोना, उसके अबोध मन में उपजी निराशा का परिचायक है । यही निराशा उसके रोने से प्रकट होती है ।
किसी भी काम को करने से पूर्व असफलता का डर , जो कुछ धरती पर उसे चल – अचल रूप में प्राप्त है उसे खो देने का डर , निश्चित रूप से व्यक्ति की मात्र कल्पना होती है जिसमें हर क्रिया और प्रतिक्रिया में शंकाएं अकस्मात् उभरकर मन को विचलित कर देती हैं । मन का विचलित होना असाधारण रूप से उसे वास्तविकता से दूर कर देता है , जिस कारण वह सोच विचार की शक्ति से दूर हो जाता है ।अंधेरे में रस्सी पर पैर पड़ जाने से साँप की उपस्थिति का भ्रम , अंजाने में रास्ते पर चलते हुए खो जाने का डर , पैसा पास होने पर चोरी का डर , आदि यह सारी स्थितियां मन के ख़ाली कोने से उपस्थिति हैं ।
कहा भी तो गया है कि – ख़ाली दिमाग़ शैतान का घर । ख़ाली दिमाग़ शैतानियत से दूर रहे , डर और भय की वरीयता से बचा रहे तो इसके लिए बहुत ज़रूरी है स्वयं को व्यस्त रखना । मन की अवस्था डर से मानसिक दुर्बलता पैदा करके किसी को भी काम करने से पीछे की तरफ़ खींचती है । डर निठल्लेपन, मंदबुद्धि , कर्महीनता , धर्मांधता, असंतोष,आत्मविश्वास की कमी, निराशा पूर्ण सोच का परिणाम है । मन की शक्तियां जब तक केंद्रित नहीं होती डर बना रहता है ।
डर के आगे जीत है यह एक जीवनोपयोगी सार्थक मंत्र है ।जीवन को भयावह और निराशा पूर्ण अवस्था से बाहर लाकर एक उद्देश्य पूर्ण सार्थक जीवन जीने के लिए इस मंत्र को अपनाना बहुत आवश्यक है ।
माया सैनी