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एहसास // लेखक अशोक कुमार मिश्र

 

आज प्रातः जैसे ही टहलने की तैयारी करके घर से निकल ही रहा था कि अचानक हमारी कमांडिंग अफसर से आदेश मिला कि आज 2 डिग्री तापमान है और आपका घूमना रद्द किया जाता है। वैसे तो ऐसे अकस्मात आदेशों का पालन करने का मेरा लम्बा अनुभव है क्योंकि भारतीय सेना के सेवाकाल के दौरान का एक अनुभवी सैनिक जो रहा हूँ। समयानुकूल वहाँ के आदेश यदा कदा इसी प्रकार के हुआ करते थे। यह क्या स्टोर से एक अप्रयोज्य रैक पकड़े जीने से नीचे उतरते हुए धर्म पत्नी का अगला आदेश मिल ही गया, ” जाओ गैलरी में पड़े तखत पर वैठकर इसको साफ करो, काला पड़ गया है यह स्टील का रैक। तुम्हें तो याद भी नहीं होगा यह कब खरीदा था? पूरी साल पैसे बचाये थे कि आने बाली धनतेरस को वर्तन रखने के लिए स्टील रैक खरीदेंगे।

मन मसोस कर आदेश पालन के अलाबा कोई चारा नहीं दिख रहा था क्योंकि आरोपों की लिस्ट अभी जारी ही थी, टहलने के बहाने किसी दोस्त के पास जाकर वैठ जाओगे और आते ही तैयार होकर किसी न किसी बहाने फिर घर से निकल जाओगे। आज की चाय आपको बार्किंग प्लेस पर ही मिलेगी। अकिंचन मूढ़ मैं कुछ सोच पाता उससे पहले ही तारपीन का तेल, एक छोटा ब्रश और एक साफ करने हेतु मेरी ही निष्प्रयोज्य बनियान! का टी एल एम(टीचिंग लर्निंग मेटेरियल) भी। कुछ पल सोचने पर मजबूर हुआ कि मुंशी प्रेमचंद ने भी शायद ऐसे अनुभवों से ग्रसित होकर श्रेष्ठ से श्रेष्ठ रचनाएँ गढ़ डाली। मैं निर्निमेष अपने ऊपर गिरी गाज के बारे में डूबा ही रहा और अनचाहे वह निखट्ठु ब्रश पकड़ ही लिया। सर्वश्रेष्ठ कथाकार मुंशी प्रेमचंद मन मष्तिष्क से निकल ही नहीं रहे थे और ” निर्मला” अरे वही प्रेमचंद जी की एक अच्छी रचना है अकस्मात मेरे अधरों पर मुस्कुराहट ले आयी। सौभाग्य आज जिनसे मेरा पाला पड़ा है निर्मला ही हैं।

मुस्कुराहट का आना और मेरी निर्मला का साथ आने का भी गजब संयोग, चाय और मिल्क रस्क देते हुए प्रश्न किया क्यों मुस्कुरा रहे हो? अरे भाई आपका आदेश पालन करते हुए क्या मुस्कुराना अपराध है? लेकिन मैंने पाशा पलटते हुए कहा कि तुमने इस रैक को खरीदने के लिए बड़ा प्रयास किया था मेरी जेब से तभी कई बार पैसे कम हो जाते थे। तुमने एक और बड़ी हिम्मत की थी जब नॉन सी एस डी कैंटीन से ला रहे थे तब इसे घर तक लाने में रिक्से के पैसे भी बचाये और एक रिस्क लेकर मेरे साथ अपनी मोपेड पर पकड़कर लाई थीं।

मेरा कार्य सम्पन्न हो चुका था उनके चेहरे पर एक आत्मविश्वास भरा मेरे लिए अनोखा सा एहसास। कई बार सुना है कि प्रियतमाओं की निठुरता ने बनाये कवि अनेकों पर आज तो एक कहानीकार भी बनाने में इनका बड़ा योगदान रहा है। लीजिये अपना चमचमाता हुआ रैक पर आज के इस मॉडर्न और मॉड्यूलर किचन में इसका क्या प्रयोग? पर निर्जीव वस्तुओ से लगाव की एक मर्यादा तो है ही।

©अशोक कुमार मिश्र,’निर्मल’

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