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फ्लेवर // डॉ निर्मला शर्मा 

 

आजकल की दुनिया में खाना और खाने में भी फ्लेवर का तो कहना ही क्या। कब कौन सा नया फ्लेवर ईजाद हो जाए और कब कौन सी नई रेसिपी आ जाए, बनाने और खाने वालों का तो भगवान ही मालिक है। आज की दुनिया में कुछ भी बना दो एक नई रेसिपी बनाकर आप महान रेसिपीस्ट की श्रेणी में आ सकते हैं। उसमें क्या-क्या चीजें इस्तेमाल की गई हैं चाहे यह भी मालूम नहीं पड़े लेकिन लोगों को उसके पीछे पागल होकर लंबी कतार में खड़ा होते हुए जरूर देख सकते है।
आजकल के लोगों के भी अजीब से शोक होते हैं कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनको पूरी तरह जली हुई ब्रेड जो की पूरी तरह से कार्बन हो जाती है वही फ्लेवर पसंद आता है। इन दिनों ऐसा चलन है। यह हाई प्रोफाइल लोगों का फ्लेवर है।इधर हल्की सी रोटी जल जाए और कुत्ते को दें तो वह भी नहीं खाता सूंघकर छोड़ देता है उसे यह फ्लेवर पसंद नहीं आता पर अब आज की दुनिया तो आज की दुनिया है ,किया भी क्या जा सकता हैं।
आजकल कुछ चीजों को धुएं में लपेटकर खाने का बड़ा चलन है और कहा जाता है कि ‘वाव वेरी टेस्टी स्मोकी फ्लेवर।’ अब स्मोकी प्लेयर क्या होता है यह तो हमसे बेहतर कौन जानता है। हमारा तो बचपन इसी स्मोकी फ्लेवर में बीता। जब चूल्हे पर खाना बनाते तो कई बार पूरा खाना ही स्मोकी फ्लेवर का हो जाता और खासतौर से जब सर्दियां होती लकड़ियां थोड़ी सीलन से नम हो जाती और जब वह नहीं जलती तो पूरे घर में स्मोक की स्मोक हो जाता। खाने का स्मोकी फ्लेवर छोड़िए इंसान और उसके कपड़े भी स्मोकी फ्लेवर के हो जाते । यहां तक कीघर भी स्मोकी फ्लेवर से महकता। मजे की बात यह होती थी कि फ्लेवर एक ही तरह का नहीं होता जिस तरह की लकड़ी चूल्हे में जलती उसी तरह का फ्लेवर उस खाने में आ जाता । अगर नीम की लकड़ी जल रही है तो फिर सोचिए कौन सा फ्लेवर आएगा। और अगर बबूल की लकड़ी जल रही है तो फिर स्मोक का फ्लेवर भी वैसा ही और यदि थूर जल रहा है तो फिर तो फ्लेवर समझो अमेजिंग। स्मोकी चाय तो अलग ही तरह की लगती थी। कभी-कभी तो इस स्मोक के पीछे डांट पड़ जाया करती थी कि धुआं अधिक देर तक क्यों होने दिया चूल्हा जल्दी क्यों नहीं जलाया। हो गई न धुवाड़ी चाय। जिस खाने को हम बचपन में ‘धुवांड्या खाना’ कहते आज वह स्मोकी फ्लेवर का खाना बन गया। अब यह फ्लेवर फेमस फ्लेवर बन चुके हैं ।खैर अब ये फ्लेवर मिलते कहां है। अब तो गांव में भी सब तरफ गैस का राज है, स्मोक कहीं दिखता ही नहीं।
कल किसी ने जले हुए पनीर को खाते हुए कहा ‘वाह ! वेरी टेस्टी क्या स्मोकी फ्लेवर है।’ मैंने कहा अगर स्मोकी फ्लेवर का टेस्ट करना ही है तो हमारे गांव चलिए हम करवाएंगे आपको असली स्मोक का टेस्ट। गैस के होते हुए भी यदा कदा स्मोकी फ्लेवर का आनंद ले ही लेते हैं । वैसे इन दिनों सब कुछ तो बदल रहा है खाने के फ्लेवर की बात छोड़िए आजकल तो अच्छे फ्लेवर की भाषा भी लोगों को नहीं भाती, उसमें भी लोगों को गाली- गलौज और अश्लीलता का फ्लेवर अच्छा लगने लगा है। पहनावे में भी सभ्यता का फ्लेवर अच्छा नहीं लगता अर्धनग्नता का फ्लेवर अच्छा लगने लगा है इसलिए फ्लेवर की तो बात ही छोड़ दीजिए। बदलते समय में न जाने अभी और क्या-क्या बदलना है कितने सारे फ्लेवर बदलेंगे और पता नहीं कितने नए आएंगे।
बहरहाल गांव में रहते हुए कभी यह नहीं सोचा था कि यह स्मोक भी कभी फ्लेवर बन जाएगा। पर आज बन ही गया न तो चलिए आज स्मोकी दाल- बाटी बनाते हैं और स्मोकी फ्लेवर का मजा लेते हैं। यह स्मोक बहुत अच्छा है क्योंकि गाय के गोबर के बने कंड़े हैं।आप सभी का स्वागत अभिनंदन है।😃🙏
©️®️ डॉ निर्मला शर्मा

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