ख़ामोशी/लघु कथा — सुनीता तिवारी

मारीशस से लौटने के बाद रेखा,रीतेश बहुत खुश थे।
रीतेश में अचानक इतना बदलाव देखकर
घर वाले बहुत प्रसन्न थे।
घूमना फिरना उन दोनों का सबको अच्छा लगता था।
रेखा के आने से घर की रौनक बढ गयी थी।
दिन हंसी खुशी बीतने लगे,अगले वर्ष दोनों मम्मी पापा बन गए।
बेटी रोशनी अब सबकी आंख का तारा बन चुकी थी।
घर के वातावरण में कुछ खामोशी से छाने लगी थी।
समझ ही नहीं आ रहा था कि इतनी चहकने वाली लड़की रेखा इतनी खामोश कैसे हो गयी।
दिन- दिन भर घर से बाहर रहती और पूछने पर सही उत्तर न देती।
हर वक्त चेहरे पर हवाईयां उड़ती रहतीं।
एक दिन रेखा ने सभी घर वालों के सामने एलान कर दिया कि यहाँ रहकर मुझे आगे बढ़ने में रुकावट हो रही है मैं लंदन जाकर पाँच साल के बाद वापस आऊँगी।
इस बीच रोशनी आप सबके पास रहेगी।
सब उदास हो गए,समझाने की कोशिश भी की, लेकिन कोई असर नहीं पड़ा।
आखिर वो दिन आया जब रेखा अपनी बेटी को छोड कर चली गयी।
घर वालों ने बदचलन
आदि न जाने कितने खिताब दे डाले।
ठीक है जब वह चली ही गयी न जाने कैसे किसके साथ रहेगी?
मेरा तो पूरा विश्वास खो दिया उसने।
खाली कर दो उसका कमरा।
सारा सामान निकाल दो बाहर।
जहाँ गयी वहीं रहे,अब यहाँ आने की जरूरत नहीं।
कमरा खाली करते समय माँ को एक चिट्ठी मिली।
पढ़ते ही निढाल हो गयी।
सब भागे,क्या हुआ इन्हें?
मां मुझे आंतों का कैंसर है पता चलने पर इलाज शुरू किया।
मैं डॉ के अनुसार पांच माह से ज्यादा न रहूँगी।
मैं रीतेश को दुःख नहीं देना चाहती,उसकी
दूसरी शादी कर देना, रोशनी को भी माँ मिल जाएगी।
आप सबको सामने न बता पाने का दुख है मुझे,माफ कर देना आप सब।
घर में खामोशी छा गयी कोई बोल नहीं पाया।
काश एक बार सबको बताया तो होता रेखा
रीतेश के मुँह से निकला।
सुनीता तिवारी